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________________ GEISHERLARUSI SUOSISMOPARIS 5 मिथ्यात्व इन दोय अवस्थाका स्वरूप कहूंहूं ॥ १६ ॥ जो मिथ्यात्वके दल ( मिथ्यात्व, मिश्र मिथ्यात्व ६ अर सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व, इन तीनू प्रकृती) • उमशम कराय मिथ्यात्वके ग्रंथीकू भेदि (स्व । अर परका स्वरूप जाननहार भेदज्ञान प्रगट होय ) । फेर मिथ्यात्वमें आजाय सो सादि मिथ्यात्वी है ॥ १७ ॥ जिसने मिथ्यात्वकी ग्रंथी भेदी नही ( स्व परका भेद जाना नही ) सदाकाल देहमें आत्म-2 पणाकी बुद्धि राखे है । ऐसा जो विकल आत्मस्वरूपते बहिर्मुख है सो अनादि मिथ्यात्वी है ॥ १८ ॥ ऐसे प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानका अभिधान ( स्वरूप ) कह्या सो समाप्त भया ॥१॥ ॥ अथ द्वितीय सासादन गुणस्थान प्रारंभ ॥२॥स०३१ सा ॥जैसे कोउ क्षुधित पुरुष खाई खीर खांड, वोन करे पीछेके लगार स्वाद पावे है ।। तैसे चढि चौथे पांचे छटे एक गुणस्थान, काहूं उपशमीकू कपाय उदै आवे है ॥ ताहि समैं तहांसे गीरे प्रधान दशा त्यागि, मिथ्यात्व अवस्थाको अधोमुख व्है धावे है॥ बीच एक समै वा छ आवली प्रमाण रहे, सोइ सासादन गुणस्थानक कहावे है ॥२०॥ __ अर्थ-जैसे कोई क्षुधावान मनुष्यने खीर शक्कर खाई, अर तिसकू वमन होजायतो वमनके पीछेसे खीर शक्करका लगार स्वाद आवे है । तैसे कोई जीव उपशम सम्यक्त ग्रहण करके चौथे वा पांचवे वा 8 छठे इनमें कोई एक गुणस्थान चढजाय, अर तहां अनंतानुबंधी कषायका उदय आवेतो। उसही वक्त । तिस गुणस्थानते गिरे अर सम्यक्त• त्यागिके, अधोमुख होय नीचे मिथ्यात्व गुणस्थानके तरफ धावे | है। तब ( सम्यक्त त्यागेबाद अर मिथ्यात्व गुणस्थान प्राप्त होनेतक बीचमें) एक समय काल प्रमाण रहे वा उत्कृष्ट छह आवली काल पर्यंत रहे, सो सासादन गुणस्थान कहावे है ॥ २०॥ *PARERIAUSISIDE OSALISHIGA SABIGAIG
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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