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________________ ... ॥ अव चौदा' भाव रत्नका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥- . . . ., लछमी सुबुद्धि अनुभूति कउस्तुभ मणि, वैराग्य कलप 'वृक्ष शंख सुवचन है ॥ 'ऐरावति उद्यम प्रतीति रंभा उदै विष; कामधेनु निर्जरा सुधा प्रमोद घन है ॥.. ध्यान चाप प्रेम रीत मदिरा विवेक वैद्य, शुद्ध भाव चंद्रमा तुरंगरूप मन है ॥ • चौदह रतन ये प्रगट, होय जहां तहां, ज्ञानके उद्योत घट सिंधुको मथन है ॥ २९॥ 5 अर्थ-सुबुद्धि है ते लक्ष्मी रत्न है, आत्मानुभव है ते कौस्तुभ मणि रत्न है, वैराग्य है ते कल्प-14 वृक्ष रत्न है, सत्य वचन है ते शंख रत्न है, उद्यम है ते ऐरावती रत्न है, श्रद्धा है ते रंभा रत्न है,कर्मोदय है ते विष रत्न है, निर्जरा है ते कामधेनु रत्न है, आनन्द है ते अमृत रत्न है, ध्यान है ते चाप रत्न है, प्रेम है ते मद्य रत्न है, विवेक है ते वैद्य रत्न है, शुद्धभाव है ते चंद्र रत्न है, मन है ते तुरंग रत्न है, ऐसे चौदह भाव रत्न जहां ज्ञानके उद्योतते चित्तरूप समुद्रको मथन है तहां प्रगट होय है ॥ २९॥ ॥ अव चौदा भाव रत्नका हेय अर उपादेय स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥- , किये अवस्था में प्रगट, चौदह रत्न रसाल । कछु त्यागे कछु संग्रहे, विधि निषेधकी चाल॥३०॥ हारमा शंक विष धनु सुरा, वैद्य धेनुहय हेय । मणिशंकगज कलप तरु, सुधा सोमआदेय॥३१॥ इह विधि जो परभाव विष, वमे रमे निजरूप । सो साधक शिव पंथको, चिद्विवेक चिद्रप||३२|| है अर्थ-ऐसे साधक अवस्थामें ये चौदह भाव रत्न रसाल उपजे है ते प्रगट कहे । अब तिसमें । कछु त्याज्य है अर कछु ग्राह्य है सो विधि निषेधकी रीत कहे है ॥ ३० ॥ लक्ष्मी, शंख, विप, धनुष्य, मदिरा, वैद्य, धेनु, अर घोडा, ये आठ रत्न अस्थिर है ताते त्यागने योग्य है। अर मणि, रंभा, हत्ती; ||
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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