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________________ समय॥ १२३॥ ॥ अव चूंघा जीवका लक्षण कहे है ॥ २ ॥ दोहा ॥ | जो उदास व्है जगतसों, गहे परम रस प्रेम । सो चूंघा गुरूके वचन, चूंघे बालक जेम ॥ १८ ॥ "अर्थ" जो जीव जगतसे उदास होयके आत्मानुभवका प्रेम रस ग्रहण करे है । अर जो गुरूके वचन बालक समान चूखे है सो चूंघा जीव है ॥ १८ ॥ ; ॥ अव सूंघा जीवका लक्षण कहे है ॥ ३ ॥ दोहा ॥ - जो सुवचन रुचिसों सुने, हिये दुष्टता नांहि । परमारथ समुझे नही, सो सूंघा जगमांहि ॥ १९ ॥ अर्थ-जिसके हृदयमें दुष्टता नही अर जो शास्त्र उपदेश रुचिसे सुने है । पण परमार्थ (आत्मतत्त्व) समझे नही सो सूंघा जीव है ॥ १९ ॥ ॥ अब ऊंघा जीवका लक्षण कहे है ॥ ४ ॥ दोहा ॥ - जाको विकथा हित लगे, आगम अंग अनिष्ट । सो विषयी विकल, दुष्ट रुष्ट पापिष्ट ॥ २० ॥ अर्थ — जिसको शास्त्रका उपदेश रुचे नही अर कुकथा प्रिय लगे है । ऐसा ऊंघा जीव है सो विषयाभिलाषी द्वेषी क्रोधी अर पापकर्मी है ॥ २० ॥ ॥ अव घूंघा जीवका लक्षण कहे है ॥ ५ ॥ दोहा ॥ जाके वचन श्रवण नही, नहि मन सुरति विराम । जडतासो जडवत भयो, घूंघा ताको नाम ||२१|| अर्थ — जिसकूं वचन नहि ते एक इंद्रिय स्थावर जीव है अर जिसकूं श्रवण नही ते दोय इंद्रिय, तीन इंद्रिय, अर चार इंद्रिय जीव है तथा जिसकूं मनकी स्मृति नही ते असंज्ञी पंचेंद्री जीव है। अर जे विरति नही, अज्ञानरूप जडतासे जडवत भये है तिसका नाम घूंघा जीव है ॥ २१ ॥ सारअ० १२ ॥१२३॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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