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________________ - ROGRESARISICERSKI SAARIRERES al अर्थ-कोई (नैयायिक ) एक नयका ग्राही कहे कि ज्ञान लोकालोक व्याप्य है, अर आत्म द्रव्य त्रैलोक्य प्रमाण है। ऐसे मानि स्वच्छंद क्रिया रहित होय डोले है अर मुखते किसीसे बोलेहूं। नहि है, तथा कहे जगतमें हमारीही महिमा है । तिसकू ज्ञाता कहे-ये जीव है सो जगतसे भिन्न है, पण जीवके ज्ञान स्वभावमें जगतका विस्तार दीखे है इह तुझे गर्व है। निश्चय नयसे जीववस्तु है सो ||जीव वस्तुमें है अर पर वस्तुसे सदा निराली रहे है, ऐसे सर्वस्वी स्याद्वादका मत प्रमाण है ॥ १४ ॥ ॥ अव ज्ञेय अनेक है तैसे ज्ञानहुं अनेक है इस तृतीय नयका स्वरूप कहे है। सवैया ३१ सा॥.कोउ पशु ज्ञानकी अनंत विचित्रता देखि, ज्ञेयको आकार नानारूप विसतन्यो है ॥ ताहिको विचारी कहे ज्ञानकी अनेक सत्ता, गहिके एकांत पक्षलोकनिसोलयो है। ताको भ्रम भंजिवेकों ज्ञानवंत कहे ज्ञान, अगम अगाध निरावाध रस भन्यो है ॥ ज्ञायक स्थभाव परयायसों अनेक भयो, यद्यपि तथापि एकतासों नहिं टप्यो है ॥ १५ ॥ . अर्थ-कोई अज्ञानी है सो ज्ञानकी अनंत विचित्रता देखि कहे की, जैसे ज्ञेयके आकार नानाप्रकार विस्ताररूप है । तैसा ज्ञानहूं नानाप्रकार विस्ताररूप होय है ताते ज्ञानकी सत्ता अनेक है,8 ऐसे एकांत पक्ष धारण करि लोकनिस्यो लयो है। तिसका भ्रम नाश करने ज्ञानवंत कहे, ज्ञान है। सो अगम्य अगाध वस्तु है सो निराबाध गुणते भरी है । यद्यपि ज्ञानका स्वभाव अनेक ज्ञेय ( वस्तु जाननेका होय है, तथापि ज्ञान अर जानपणा एकही है अपने एकतासों कदापि नहि टले है ॥१५॥ ॥ अव ज्ञानमें ज्ञेयका प्रतिबिंब है इस चतुर्थ नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ।।कोउ कुधी कहे ज्ञानमांहि ज्ञेयको आकार, प्रति भासि रह्यो है कलंक ताहि धोइये ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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