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ज्यौं पंथी ग्रीषम समै, बैठे छाया मांहि । त्यौं अधर्मकी भूमिमें, जडं चेतन ठहरांहि ॥ २३॥ sil अर्थ-जैसें पथिक ग्रीषमकी आतापका अवसरमें छायाका निमित्त पाय वैठत है । तैसें ।
अधर्मद्रव्यकी अवगाहनके निमित्ततें जड जो पुद्गल अर चेतन जो जीव ये दोऊ स्थितिरूप होय ठहराहि है ॥ २३ ॥ अब आकाशद्रव्य कथन ।। ५॥ दोहा ।।संतत जाके उदरमें, सकल पदारथ वास । जो भाजन सव जगतको, सोइ द्रव्य आकाश ॥२४॥ HI अर्थ-निरंतर जाके उदरमें समस्त पदार्थनिका निवास है अर जो. समस्त जगतकू
आधारभूत भाजन समान है सोई आकाशद्रव्य है ॥२४॥ अव कालद्रव्य ॥६॥ दोहा ।।---
जो नवकार जीरनकरै, सकल वस्तुथिति ठांनि । परावर्त वर्तन धरै, कालद्रव्य सो जांनि॥२५॥ 18 अर्थ-जो नवीनकरि जीर्णकरै अर समस्त वस्तुकी पर्यायरूप स्थिति करिक निरंतर परावर्तनरूप वर्तनाळू धारै सो कालद्रव्य जानह ॥ २५ ॥ इति पटद्रव्य वर्णन ॥
अथ अनुभवके अर्थि नवतत्त्व वरणन करे है । अब जीवतत्त्व कथन ॥ १॥ दोहा ।।-- समता रमता उरधता, ज्ञायकता सुखभास । वेदकता चैतन्यता, ये सव जीवविलास ||२६|| Pil अर्थ-समभावतामें रमता कहिए भोक्ता, ऊर्ध्व गमन स्वभावता, ज्ञायकता, सुखस्वभावता, सुखदुःखका वेदकपणा अर चैतन्यपणा ये समस्त जीवका विलास है ।। २६ ॥ अब अजीवतत्त्व कथन ॥२॥ दोहा ।।तनता मनता वचनता, जडता जडसंमेल । लघुता गरुता मगनता, ये अजीवके खेल ॥२७॥
अर्थ-तनपणों, मनपणों, वचनपणों, जडपणों, जडसे मिलनपणों, लघुपणों, गुरुपणों,
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