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________________ SSHOSES ॥१०॥ समय- अर्थ-दुर्बुद्धी है ते कपटी है ताते तिसकू कुटिला कही अर जगतकुं अंप्रिय लागे ताते तिसकूँ | सार. - कुरूपी कही अर देहके साथ प्रीति राखे ताते तिसकू व्यभिचारी कही है, अपने अशुद्धपणासे विषयके । अ० १९ वश हुई ताते तिसकू वेचाई है । दुर्बुद्धी हितका मार्ग नहि दीखे ताते तिस• अंध कही अर चेतन । विना अन्यकी वात करे ताते तिसकू कमंध ( विना मस्तकका देह ) कही है, कर्मका बंध बढावे 15 ताते तिसकुं धंधाली कही है। दुर्बुद्धी है सो आत्माका अभाव माने ताते तिसकू रांड कही अर सबके s आगे आगे धावे ताते तिसकू मांड समान मन्तवारी कही है, स्वछंद डोले ताते तिसळू सांड कही है। है अर निर्लज वचन बोले ताते तिसकू भांडकी पुत्री कही है। दुर्बुद्धी है सो अपने घरके ज्ञान धनका भेद नहि जाने ताते तिसळू पराधीन खेद करनहारी कही है, ऐसे दुर्बुद्धीके गुण है ताते तिसळू कुना है (दासी) कहाई है ॥ ७३ ॥ ॥ अव सुबुद्धीके गुण राधिका (राणी) समान है सो कहे है ॥ सवैया ॥ ३१ सा ॥। रूपकी रसीलि भ्रम कुलपकी कीलि शील, सुधाके समुद्र झीलि सीलि सुखदाई है। प्राची ज्ञानभानकी अजाची है निदानकि, सुराचि निरवाची ठोर साची ठकुराई है॥ ५ धामकी खबरदार रामकी रमन हार, राधा रस पंथनिकें ग्रंथनिमें गाई है ॥ है संतनकी मानी निरवानी नूरकी निसाणि, याते सदबुद्धि राणी राधिका कहाई है ॥७॥ ॥१०॥ अर्थ-सुबुद्धी है ते आत्मानुभवकी रुची करे है ताते तिसकू स्वरूपवान कही अर भ्रमकू खोले है १ ताते तिसकू कुलूपकी कीली कही है, शीस सुधाके समुझमें उछले ताते तिसकू शीलवान सुखदाई कही। ॐ है। सुबुद्धी है सो ज्ञानकी पूर्व दिशा है अर निदानकी अजाची है, वचन गोचर नहि आवे ऐसे शुद्ध
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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