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है अर ज्ञान है सो आत्म स्वभावका है । ऐसे ज्ञान अर ज्ञेयके भेद स्वभाव गुण अर लक्षण, जो समय-5 ह
" सार. ई सम्यक्दृष्टी भेदज्ञानी है सो जाने है । अर जो मूढं है सो ज्ञानकुं ज्ञेयके आकार कहे है, ताते ज्ञान• अ०१० ॥९॥ । प्रत्यक्ष कलंक लगे है सो तो देखेही नही है ॥ ५२ ॥
॥ अव मूढ अपना मत दृढ करके दिखावे है ॥ चौपई ॥ दोहा ।निराकार जो ब्रह्म कहावे । सो साकार नाम क्यों पावे ॥
ज्ञेयाकार ज्ञान जव ताई । पूरण ब्रह्म नांहि तव ताई ॥ ५३॥. अर्थ-ब्रह्म (आत्मा) है सो निराकार है, तिस ब्रह्मकुं साकार नाम कैसे पावे है । जबतक ज्ञेयके आकार ज्ञानमें है, तबतक पूर्णब्रह्म नही है ॥ ५३ ॥
ज्ञेयाकार ब्रह्म मल माने । नाश करनको उद्यम ठाने ॥
वस्तु स्वभाव मिटे नहि कोही । ताते खेदकरेसठ योंही॥ ५४॥ मूढ मरम जाने नही, गहि एकांत कुपक्ष । स्यादाद सखगमें, माने दक्ष प्रत्यक्ष ॥ ५५॥
अर्थ-ज्ञानमें जो ज्ञेयके आकार प्रतिभासे है सो ब्रह्मा मल माने है, अर तिस मलका नाश करने•8 उद्यम करे है। परंतु सो मल मिटे नही, ताते मूढ वृथा खेद करे है ॥ ५४॥ मूढ है सो गुण अर
लक्षणका भेद जाने नही, ताते एकांत कुपक्ष ग्रहण करे है। अर प्रवीण है सो स्याहादके आश्रयते । हूँ साकार तथा निराकारका समस्त अंग प्रत्यक्ष माने है॥ ५५ ॥
॥९॥ ॥अब स्याद्वादके आश्रय करनारे जे सम्यक्ती है तिनकी प्रशंसा करे है ॥ दोहा॥शुद्ध द्रव्य अनुभौ करे, शुद्ध दृष्टि घटमांहि, ताते सम्यक्वंत नर, सहज उछेदकनांहि ॥५६॥