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________________ समय॥८॥ PORRORLDRESPARDS है। फेर केवल ज्ञानरूप प्रकाश होय है, तब आत्माका निश्चल गुण है सो सुखकी रास भासे है । फेर मनुष्य आयुकी स्थिति पूर्ण करिके, अर मनुष्यगतीका खभाव छोडिके परमात्मा (अष्ट कर्मते * रहित ) होय है। इस प्रकार अनन्य प्रभूता धारण करे है, जैसे बुंदबुंदते सागर होय है । तब दू अचल अखंड निर्भय अर अक्षय ऐसे मोक्ष स्थानमें जीव जाय वसे है ते जीव जगतमें जयवंत होहुं ॥५१॥ ॥ अव अष्ट कर्म नाश होते जीव• अष्ट गुण प्राप्त होय है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥- ज्ञानावरणीके गये जानिये जु है सु सब, दर्शनावरणके गयेते सब देखिये ॥ . वेदनी करमके गयेते निराबाध रस, मोहनीके गये शुद्ध चारित्र विसेखिये ॥ आयुकमें गये अवगाहन अटल: होय, नाम कर्म गयेते अमूरतीक पेखिये ॥ अगुरु अलघुरूप होय गोत्र कर्म गये, अंतराय गयेते अनंत वल लेखिये ॥ ५२ ॥ __अर्थ-ज्ञानावरणीय कर्मका नाश होते केवलज्ञान प्राप्त होय है तब सब लोककू अर अलोकळू जाने है ॥ १॥ दर्शनावरणीय कर्मका नाश होते केवल दर्शन प्राप्त होय है तब सब लोककू अर ॐ अलोककू देखे हैं ॥ २॥ वेदनी कर्मका नाश होते अनंत सौख्य प्राप्त होय है ॥ ३ ॥ मोहनी कर्मका ६ नाश होते शुद्ध सम्यक्त (आत्मामें आत्माका स्थिरपणा) होय है ॥ ४॥ आयुष्य कर्मका नाश होते ₹ अनंत कालकी स्थिति प्राप्त होय है ॥५॥ नाम कर्मका नाश होते शरीर रहित अमूर्तीकपणा प्राप्त होय है ॥६॥ गोत्र कर्मका नाश होते अगुरुलघुपणा प्राप्त होय है ॥७॥ अंतराय कर्मका नाश होते अनंत बल प्राप्त होय है ॥ ८॥ ऐसे सिद्धके आठ गुण हैं ॥ ५२ ॥ ॥ इति श्रीसमयसार नाटकको नवमो मोक्षद्वार बालबोध सहित समाप्त भयो ॥९॥ SHRSONSISRKARIREOGREGREATREAK ||cell
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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