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________________ EXCIR समय अर्थ-जिसकी बुद्धि परके गुण चून लेने• चिमटा जैसी है, अर जिनोंने कुकथा सुनवेळू दोन । कान बंद कर राखे हैं। जिन्हका चित्त निष्कपटी है अर जे कोमल वचन बोले है, तथा काम॥८॥ क्रोधादि रहित सौम्यदृष्टीसे वर्तन करे है मानूं मोमके घढे है । अर जिन्हके सुमतीकी शक्ती आत्माका 2 अनुभव करनेकू जाग्रत हुई है, तथा परमात्मस्वरूपमें लीन होने• जिन्हका मन बढगया है । तेही का 5 सम्यदृष्टि परम पवित्र पुरुष है, जे अष्ट प्रहर रामरसमें मम होय आत्मानुभवका पाठ पढ़े है ॥३१॥ - ॥ अव आत्मसमाधिका स्वरूप कहे है ॥ दोहा॥-. राम रसिक अरु राम रस, कहन सुननकों दोइ । . . जब समाधि परगट भई, तब दुविधा नहि कोइ ॥ ३२॥ नंदन वंदन थुति करन, श्रवण चितवन जाप। पठन पावन उपदिशन, बहुविधि क्रिया कलाप ॥ ३३॥ . शुद्धातम अनुभव जहां, शुभाचार तिहि नाहि । करम करम मारग विर्षे, शिव मारग शिव मांहि ॥३४॥ ६ अर्थ-आत्माराम है सो रस है अर अनुभव है सो रसिक है, ये दोय भेद कहनेके सुननेके है। . परंतु जब आत्मस्वरूपमें समाधि ( तल्लीनता) होय है तब दुविधा ( रस अर रसिक ये दोय भेद) है नहि रहे ॥३२॥ आत्माराम जब रसिक अवस्था धारे तब आनंद पावे, वंदन करे, स्तुति करे, जाप, * जपे, शास्त्र श्रवण करे, शास्त्र चिंतवन करे, शास्त्र पठण करे, शास्त्र पठण करावे, अर धर्मोपदेश करे, ॐ ऐसे बहुत प्रकारकी उत्तम उत्तम शुभ क्रिया करे है ॥ ३३ ॥ पण जहां शुद्ध आत्माका अनुभव है, SONGGARASIRSAGROGRUCHAR RORESEACHER-RINGIGARH ॥८५॥ 158
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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