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________________ समय ॥७०॥ AURREGADARSANEEDS . . ॥ अव जिसकू मोहकी विकलता नही ते साधु है सो कहे है ॥ छंद अडिल्ल ॥ सदा मोहसों भिन्न, सहज चेतन कह्यो । मोह विकलता मानि मिथ्यात्वी हो रह्यो। करे विकल्प अनंत, अहंमति धारिके । सोमुनि जो थिर होइ, ममत्व निवारिके॥३०॥ हूँ अर्थ-निश्चय नयते आत्मा मोहसे भिन्न है, पण व्यवहार नयते मोहकर्मकरि विकलता (आत्म* स्वरूपमें भ्रम ) मानि मिथ्यात्वी हो रह्या है । ताते अहंबुद्धि धरिके मनमें अनंत विकल्प करें है अर 8 , जो अहंबुद्धिकू निवारण करिके आत्मस्वरूपमें स्थिर होय है सो मुनी है ॥ ३०॥ ॥ अव सम्यक्ती आत्मस्वरूपमें कैसे स्थिर होय है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥- : असंख्यात लोक परमाण जे मिथ्यात्व भाव, तेई व्यवहार भाव केवली उकत है ॥ जिन्हके मिथ्यात्व गयो सम्यक दरस भयो, ते नियत लीन व्यवहारसों मुकत है ॥ निरविकलप निरुपाधि आतम समाधि, साधि जे सुगुण मोक्ष पंथकों दुकत है ॥ तेई जीव परम दशामें थिर रूप व्हेके,, धरममें धुके न करमसों रुकत है ॥ ३१ ॥. ( अर्थ-लोकके असंख्यात प्रदेश है तिस असंख्यात प्रदेशरूप भाव होना सो मिथ्यात्व भाव है हूँ तेही व्यवहारमिथ्यात्वके असंख्यात भाव है ऐसे केवलीभगवानका भाष्य है। जिसका मिथ्यात्व गया । है अर सम्यक्त प्राप्त भया है, ते निश्चयमें लीन है अर व्यवहारते मुक्त (रहित ) है । अर व्यवहारते । ॥७॥ १ मुक्त होय जे विकल्प अर उपाधि रहित आत्मानुभव करे है, तथा ज्ञानते मोक्षमार्ग• देखे है । तेही जीव आत्मस्वरूपमें स्थिररूप होयके, मोक्षकू जाय है कर्मसे रूके नहि ॥ ३१॥ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐ
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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