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________________ बंध नहि होय है ॥३५॥ कैसा है ज्ञान ? मोहरूप महा अंधकारकू तो हरे है, अर सुबुद्धीक प्रकाश करके, मोक्षमार्ग• प्रत्यक्ष बतावे है, ऐसे ज्ञानरूप दीपकका विलास है ॥ ३६॥ ॥ अव ज्ञानरूप दीपकका स्वरूप कहे है । सवैया ३१ सा ॥जामें धूमको न लेश वातको न परवेश, करम पतंगनिकों नाश करे पलमें ॥ दशाको न भोग न सनेहको संयोग जामें, मोह अंधकारको वियोग जाके थलमें ॥ जामें न तताइ नहि राग रकताइ रंच, लह लहे समता समाधि जोग जलमें ॥ ऐसे ज्ञान दीपकी सिखा जगि अभंगरूप, निराधार फूरि पैं दूरि है पुदगलमें ॥३॥ अर्थ-ज्ञानदीपकमें धूमका तो लेशही नहीं है अर जिसकूँ बुझावनेनूं कोई पवन पण प्रवेश करे । 5/नहि, अर कर्मरूप पतंगका नाश एक पलमें करे है । जिसमें बत्तीका तथा घृत तैलादिकका प्रयोजन , नही लगे है, मात्र जहां ज्ञानरूप दीपक है तहांही मोहरूप अंधकारका वियोग होय है। ज्ञान-14 दीपकमें तप्तपणा तथा ललाई रंचमात्रही नही, अर समता समाधि अर ध्यान लह लहाट करे है। ऐसा जो ज्ञानरूप दीपक है तिसकी जोती सदा अभंग जाग्रत रहे है, सो जोती सर्व पदार्थोंका ज्ञान करने• आधार है अर आप निराधार स्वयंसिद्ध आत्मामें स्फुरायमान है देहमें नही है ॥ ३७॥ ॥ अव शंखका दृष्टांत देके ज्ञानकी स्वच्छता दिखावे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसो जो दरवतामें तैसाही खभाव सधे, कोउ द्रव्य काहूको स्वभाव न गहत है। जैसे शंख उजल विविध वर्ण माटी भखे, माटीसा न दीसे नित उज्जल रहत है। तैसे ज्ञानवंत नाना भोग परिग्रह जोग, करत विलास न अज्ञानता लहत है ॥ ज्ञानकला दूनी होइ बंददशा सूनी होइ, ऊनि होइ भौ थीति बनारसि कहत है ॥३०॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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