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________________ - ॥ अव अनुभवी ज्ञानीका सामर्थ्य कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥जिन्हके हियेमें सत्य सूरज उद्योत भयो, फैलि मति कीरण मिथ्यात तम नष्ट है। जिन्हके सुदृष्टीमें न परचे विषमतासों, समतासों प्रीति ममतासों लष्ट पुष्ट है। -जिन्हके कटाक्षमें सहज मोक्षपथ सधे, सघन निरोध जाके तनको न कष्ट है ॥ | तिन्हके करमकी किल्लोल यह है समाधि, डोले यह जोगासन बोले- यह मष्ट है ॥२८॥ 5 अर्थ-जिन्हके हृदयमें अनुभवरूप सत्य सूर्यका उदय हुवा है, सो उदय सुवुद्धिरूप किर्णका फैलाव करके मिथ्यात्वरूप अंधकारकू नाश करे है। जिन्हके सुदृष्टीमें विषमता ( राग अर द्वेष ) का परिचय नहि रहे, अर समतासों प्रीति रहे तथा मोहममताकी प्रीति छोडे है। जिन्हको पलकमें मोक्षमार्ग सधे है, अर देहके कष्टविना सघन (मन) कू जीते है तिन्ह अनुभवीका विषयभोग है सो समाधि है, रागद्वेषमें डोले है सो जोगासन है अर बोले है तो पण मौन्यव्रती है ऐसा अनुभवका सामर्थ्य है ॥२८॥ PIL. ॥ अव सामान्य परिग्रहका अर विशेष परिग्रहका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥sआतम स्वभाव परभावकी न शुद्धि ताकों, जाको मन मगन परिग्रहमें रह्यो है ॥ ऐसो अविवेकको निधान परिग्रह राग, ताको त्याग इहालौं समुच्चैरूप कह्यो है। । अब निज पर भ्रम दूर करिवेको काज, बहुरी सुगुरु उपदेशको उमह्यो है ॥ .. परिग्रह अरु परिग्रहको विशेष अंग, कहिवेको उद्यम उदार लहलह्यो है ॥ २९ ॥ KET अर्थ-जिसका मन परिग्रहमें मम हो रह्या है, तिसकूँ आत्मस्वभावकी तथा पुद्गल स्वभावकी शुद्धि (स्मरण) नही रहे है। ऐसे अविवेकका निधान परिग्रहकी प्रीति है, तिस प्रीतिका समुच्चै त्याग - ॐॐॐSSSSSॐॐॐॐ* - ....
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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