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________________ 听听听听听听听听听听听听听 असाधारण तपस्वी परमपूज्य आचार्य शान्तिसागर जी छाणी अपने समय के दिगम्बर साधु, कठोरतम तपस्या के साधु हो गये हैं। मैं अपने ग्राम के वृद्ध पुरुषों से सुनती आई हूँ कि महाराज श्री जब चन्देरी में विराजमान थे, तब ज्येष्ठ T- मास की खरी दुपहरिया में खन्दार जी के विंध्य शिखर पर चार-चार घन्टे योग धारण कर सामायिक करते थे। हस्तपुट में नीरस आहार लेने वाले परम ऋषि के श्री चरणों में विनम्र श्रद्धा समन समर्पित हैं। खरगौन (म.प्र.) सौ. प्रज्ञा जैन ते गुरु मेरे उर वसो ___ संसार के कारागार से मुक्ति दिलाने वाले गुरू ही होते हैं। ये सदगुरू प्राणियों को कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग पर लगाते हैं। ऐसे परमपूज्य गुरू आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी) ने बीसवीं सदी के प्रथम चरण में दिगम्बर मुद्रा को धारण कर स्व-पर कल्याण किया तथा संसारी प्राणियों को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर सन्मार्ग में लगाया, उनके पुनीत चरणों में मेरी सभक्ति श्रद्धाञ्जलि समर्पित है। गुरुवे नमः! सौ. शांति देवी "प्रभाकर" अचल साधक महान तपस्वी, घोर संयमी, परम चारित्र-साधक, सरल स्वभावी आचार्य श्री 108 शान्ति सागर छाणी महाराज जी ने ही आर्ष परम्परा को जीवित रखा। वह अनेक प्रकार के उपसगों के आने पर भी दृढ़ रहे। विचलित नहीं हुए। - ऐसे अचल साधक के प्रति किसका हृदय असीम श्रद्धा से नत नहीं होगा? म अतः ऐसे गुरू के चरण कमल वन्दनीय हैं। चरण रज धरणीय है। चरण चिह्न TE अनुसरणीय हैं। सम्यक् मार्गदर्शक हैं, ऐसे चरण-कमलों में भक्ति पूर्वक कोटि-कोटि शत शत नमन है। ललितपुर कपूर चन्द जैन प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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