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________________ फफफफफफफफफ रूढ़िवाद एवं वर्गवाद उन्मूलक प्रागैतिहासिक काल से ही, मानव को महामानव बनने, समता एवं समानता के उपदेश से रूढ़िवाद एवं वर्गवाद मिटाने में, श्रमण परम्परा का अतुलनीय योगदान रहा है। जीवन की वास्तविकताओं का परिचायक विशुद्ध अध्यात्म, सर्वप्रथम श्रमणों के जीवन-दर्शन एवं वाणी से ही प्रस्फुटित हुआ। ऐसी श्रमण परम्परा के अनन्य चेता प. पूज्य आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज ( छाणी), जिन्होंने अपने त्यागमय जीवन से संपूर्ण उत्तर भारत में श्रामण्य का पाठ पढ़ाया था, को स्मृति ग्रंथ के माध्यम से भावप्राणित श्रद्धाञ्जलि प्रेषित कर स्वयं को महाभाग अनुभव कर रहा हूँ। 13.3.92 ! ब्र. देवेन्द्र कुमार श्रमण परम्परा के स्तम्भ आचार्य शान्तिसागर छाणी दिगम्बर श्रमण परम्परा के सुदृढ़ स्तम्भ थे । बीसवीं शताब्दी में उन्होंने निर्मल मुनि परम्परा को पुनर्जागृत कर जैन धर्म एवं समाज का महान् उपकार किया है। मैं उनके चरण-कमलों में अपनी श्रद्धाञ्जलि अभिव्यक्त करते हुए गौरवान्वित हूँ । 14 ब्र० अतुल संघस्थ - उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज यथानाम तथा गुण अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के बाद श्रमण-धारा अविरल रूप से प्रवाहित हो रही थी, काल रूपी तूफान की लहरों ने उत्तर में दि. मुनि परम्परा का अकाल सा ला दिया। श्रमण परम्परा के अकाल का अन्त हुआ था, बागड़ प्रान्त में जन्मे बालक केवलदास से। जिन्होंने जिन प्रतिमा के सामने दीक्षा लेकर केवल ज्ञान के पथ पर चलते हुए अपने नाम को सार्थक किया। ऐसे परम तपस्वी पूज्य आ ) शान्ति सागर जी महाराज श्री के चरणों में अपार श्रद्धा भक्ति के साथ विनयाञ्जलि समर्पित करता हूं । तड़ाई, बिहार ब्र. मनीष संघस्थ - उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ தமிமித்தகதிமி
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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