SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5555555555555555 सन्मार्गदर्शी ___ सन्मार्ग दर्शक गुरु के अभाव में समीचीन वीतरागी देव, आगम ज्ञान LF और चारित्र की विशुद्धता का होना असंभव है, वैराग्य मार्ग को सुदृढ़ और F- प्रशस्त करने के लिये गुरु का संबल अत्यावश्यक है, लेकिन पूज्य आ. +7 शान्तिसागर जी ने जिन प्रतिमा को ही गुरु मानकर स्वयं दीक्षित होकर श्रमण TE मार्ग प्रशस्त किया, यह साधु जीवन उनकी ही देन है. आप उग्र तपस्वी, शान्त परिणामी, निस्पृह प्रवृत्ति के साधु थे। उनके जीवन से सत्प्रेरणा लेकर हमारा जीवन भी उनके सदृश बनें, ऐसी प्रतिक्षण भावना भाते हुए मैं श्रद्धावनत होकर LF सिद्ध, श्रुत, आचार्य भक्तिपूर्वक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। मुनि वैराग्य सागर महाराज संघस्थ-उपाध्याय मुनि श्री ज्ञानसागर जी सौम्यमूर्ति प्रातः स्मरणीय परमपूज्य गुरुवर 108 आचार्य श्री शान्ति सागर जी (छाणी) के चरणों में कोटि-कोटि नमोस्तु। आप बड़े शांत स्वभावी, सरल परिणामी, सौम्यमूर्ति, विशेष तपस्वी थे। आपका जीवन त्यागमयी था। अतः ऐसे महान तपस्वी ऋषि आचार्य महाराज के आशीर्वाद से हम उन जैसे बनकर उनके मार्ग पर चलकर उनके अनुयायी बनें। लखनादौन 30.3.92 108 मुनि आदिभूषण 10 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy