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154FEFLISELLEL 55545454545 15 मांसाहार के लिये पशु-भोजन के उत्पादन के रूप में उससे 14 गुनी T: अधिक कृषि भूमि की आवश्यकता होती है। । क्या आप जानते हैं कि यदि दस एकड़ जमीन पर सोयाबीन की खेती
की जाये तो एक साल तक 60 लोगों का पेट भरा जा सकता है? चावल पैदा किये जायें तो एक वर्ष के लिये 40 लोगों का पेट भरना संभव है। गेहँ
उत्पादन किया जाये तो 30 लोगों का पेट एक वर्ष तक भरा जा सकता है। 15 मक्का का उत्पादन किया जाये तो 15 लोगों की पूरे एक साल तक परवरिश TH की जा सकती है। किन्तु मांस देने वाले पशुओं को पैदा किया जाये तो केवल 51 3 लोगों का पेट भरा जा सकता है। एक बकरा 7 पौंड अनाज खाता है तब एक पौंड मांस तैयार होता है।
इस प्रकार उपर्युक्त सभी तथ्य यह प्रमाणित करते हैं कि मानव को -1 अपनी भूख शांत करने के लिये शाकाहार का ही सेवन करना चाहिये।
भारतीय जीवन में अहिंसा, करुणा, प्रीति, वात्सल्य, पर्यावरण की रक्षा, प्रकृति से भरपूर प्यार, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के लिए गहरी सहानुभूति का जो तत्त्व था, वह बिल्कुल चौपट हो गया है। प्रकृति के लिये हमारे मन में जो धारणा और आत्मीयता थी वह अब लगभग खत्म हो चली है।
मूलतः हमारा देश शाकाहारी है, अहिंसक है, प्रकृति प्रेमी है, कृषि प्रधान है। धरती हमारी मां है, किन्तु अब उपहासास्पद यह है कि उसी की - छाती पर मुर्गी पालन केन्द्रों का एक अन्तहीन जाल बिछा दिया गया है।
पं. जवाहरलाल नेहरु ने कहा था यदि पशु-पक्षियों का अस्तित्व खतरे में पड़ता है तो हमारा जीवन तुरंत सुस्त और बदरंग पड़ जायेगा। इसी तरह मनीषी, चिन्तक, अल्बर्ट स्वाइत्जर' के शब्द हैं, "मनुष्य जीवित प्राणियों के प्रति जिस हमदर्दी का अनुभव करता है वही उसे सच्चे अर्थों में मानवीय बनाती है। क्यों भूल रहे हैं हम महापुरुषों की इन सूक्तियों को और क्यों उजाड़ रहे हैं बदहवास प्रकृति और पृथ्वी का सुहाग?
हमारी हिंसा का जाल अब इतना घिनौना और खून में सना हो गया है कि हम अपने पालतू कृषि-पशुओं को भी काटकर खाने लगे हैं।
किसी की खुशियाँ छीनकर अगर हम सुख से जीना चाहें तो हम सुख ा का जीवन नहीं जी सकते। आज मानव के हृदय में लकवा सा लग गया ।
है। हृदय शून्य हो गया है, संवेदना से, करुणा से, दया से। राम-रहीम और
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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