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________________ 555555555555555555555 45 है। स्त्री, उत्पादिका शक्ति है, सृजनात्मक शक्ति है। उसमें एक से अनेक - बनने-बनाने का विकास-सूत्र छिपा हुआ है, वह जननी है, धरित्री है, उसमें धारण करने की शक्ति है। नारी की यह विशेषता है कि वह अपने में स्वाभाविक रूप से आत्मिक - गणों व शक्ति-तत्त्वों को समेटे रहती है जो परस्पर जोडने का काम करते हैं। ये तथ्य व्यक्ति और व्यक्ति को, मन और मन को, परिवार और परिवार को, अतीत और वर्तमान को जोड़ते हैं और जुड़ाव की यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। जुड़ाव का यह कार्य सकारात्मक चिन्तन से संभव हो पाता है। इसके लिये व्यक्तित्व की ऐसी विशेषताएं और आत्म-गुणों की 45 अपेक्षा होती है जो स्त्री में सहज रूप से अंकुरित, पल्लवित और पुष्पायित होती हैं। यथा-सहिष्णुता, सहनशीलता, वत्सलता, त्याग-वृत्ति, श्रमशीलता, कोमलता, करुणा, परदुखकातरता आदि। किसी भी समाज के विकास के लिये ये गुण नींव के पत्थर का काम करते हैं। नारी के अनेक रूप हैं। माता के रूप में वह सन्तान को जन्म देती 31 है, उसका पालन-पोषण करती है। पत्नी के रूप में घर की लक्ष्मी बनकर LE पूरे परिवार को जोड़े रखती है। पुत्री-रूप में वह मातृ-पितृ पक्ष की मूल्यवान - धरोहर है तो वही पत्नी रूप में दूसरे घर अर्थात् ससुराल जाकर अपने स्नेह-सूत्र से दो परिवारों को परस्पर जोडती है। यहीं से समाज-निर्माण का और समाज विकास का आधारभूत कार्य आरम्भ होता है। बहिन, सखी, सेविका आदि उसके अन्य रूप हैं जिनके माध्यम से उसे विभिन्न सामाजिक प्रवृत्तियों को गतिशील बनाने का अवसर मिलता है। समाज के विकास में शिक्षा का बड़ा महत्त्व है। औपचारिक शिक्षा स्कूल और कॉलेज में मिलती है। स्वतंत्रता के बाद इस शिक्षा में आश्चर्यजनक 4 वृद्धि और विकास हुआ है। स्कूल और कॉलेजों में प्रवेश के लिए बड़ी भीड़ लगी रहती है। शिक्षित बेरोजगार युवक डिग्रियों का भार ढोये लक्ष्यहीन, - दिशाहीन दौड़ लगाते रहते हैं। कहने का तात्पर्य है कि आज तथाकथित फ्र शिक्षा के माध्यम से ज्ञानात्मक विकास बहुत हुआ है, सूचनाओं का ढेर, शिक्षित TE युवक-मस्तिष्क में जमा हुआ है पर सांस्कृतिक, भावात्मक और गुणात्मक का विकास उस अनुपात में नहीं देखा जाता है। यही कारण है कि आज + ज्ञान-विज्ञान का इतना विकास होते हुए भी जीवन में शान्ति, समाज में सौहार्द - 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 517 45454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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