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________________ 1595959595595959595555555555 समवायांग (12) तथा आवश्यक नियुक्ति (374 आदि) में पाया जाता है।94 19 बलदेवों, 9 वासुदेवों और 9 प्रतिवासुदेवों का उल्लेख सर्वप्रथम आवश्यक भाष्य में मिलता है। वस्तुतः इस संबंध में पूर्वापर आलोचनात्मक अध्ययन करना आवश्यक ना है कि जैन परम्परा में शलाका पुरुषों का अन्तर्भाव कब और किन परिस्थितियों में किया गया। हरिवंश पुराण में अन्य महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा (1) लेखक ने अपनी कृति के प्रति शुभकामना व्यक्त करते हुए कहा है कि यह कृति श्री पर्वत की भाँति सुप्रतिष्ठित रहे (66.54)| जान पड़ता है कि उनके समय में तांत्रिकों का बहुत प्रभाव था जो मंत्र-तंत्र एवं विद्यासाधना के लिये श्री पर्वत (आन्ध्र प्रदेश में करनूल जिले में अवस्थित) से जालंधर तक के चक्कर लगाया करते थे।कहारयण कोस (1101 ई.) में गुणचन्द्र गणि ने श्रीपर्वत का उल्लेख किया है। (2) जैन शास्त्रों के असाधारण विद्वान होने के साथ वे कवि भी थे। हरिवंशपुराण में महाकाव्य के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। उनकी साहित्यिक धरा उनके द्वारा प्रयुक्त विविध अलंकारों एवं छन्दों में देखी जा सकती है। उनके बसंतऋतु, शरदऋतु एवं चन्द्रोदय के वर्णन अद्वितीय हैं। 57वें सर्ग में 183 श्लोकों में भगवान नेमिनाथ के समवसरण का अनुपम वर्णन किया : गया है जो अन्यत्र देखने में नहीं आता। 63वें सर्ग में (78-114) बलदेव के घोर तप का वर्णन है। इसी प्रसंग में स्वजनों की तृप्ति के हेतु मृतक कृष्ण को जल प्रदान करने का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त कृष्ण की बालक्रीड़ा, उनके लोकोत्तर पराक्रम, प्रद्युम्न की चेष्टायें, यादवों की जलक्रीड़ा आदि के काव्यमय सुन्दर वर्णनों से यह रचना सुशोभित है जो लेखक की । काव्य प्रतिमा पर चार चांद लगाती है। (3) गंधर्वसेना वर्णन नामक 19वें सर्ग में (141-261) गंधर्वविद्या का । विस्तृत वर्णन है जो लेखक के संगीत विद्या के गंभीर अध्ययन का साक्षी है। 20वें सर्ग में विष्णुकुमार मुनि के माहात्म्य का सरस वर्णन है। यहां। सिद्धान्तगीतिका गानरुच्चैराकाशचारण: (58) श्लोक का अर्थ किया गया है LE: सिद्धांत शास्त्र की गाथाओं को गाने वाले एवं बहुत ऊँचे आकाश में विचरण LE करने वाले चारण ऋद्धिधारी मुनियों ने । वस्तुतः यहां लेखक का तात्पर्य सिद्धांतगीतिका' (वसुदेवहिडि में विण्हुगीइया = विष्णुगीतिका) से है जिसे "ऊँचे स्वर से गाये जाने की ओर लक्ष्य किया गया है। (4) संजयत्तपुराण वर्णन (सर्ग 27) के प्रसंग में प्रस्तुत हरिवंशपुराण, । 1545454545454545454545454545454545454545454545 4 - -1 1 . . - प्रशासन प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रन्थ 509 6445745746741454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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