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________________ 1514599545454545454545454545454545 कहा है-व्यवहार भूयत्थो भूयत्थो देसिदो य शुद्धणओ। - कुंद-कुंद स्वामी के समय सार और नियमसार में आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मस्वरूप का प्रतिपादन है। अतः इसमें निश्चय और व्यवहार दो ही नय उपलब्ध होते हैं। पर पंचास्तिकाय और प्रवचन सार में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के माध्यम से आत्म रूप का विवेचन उपलब्ध होता है। नयों के संदर्भ में यह ध्यान रखना आवश्यक है। शास्त्रीय और आध्यात्मिक दृष्टि LE में परस्पर विरोध नहीं है। मात्र प्रयोजन वश उनके विवेचन में भेद परिलक्षित होता है। शास्त्रीय दृष्टि का प्रयोजन वस्तु के सर्वांगीण स्वरूप का दर्शन कराता है और आध्यात्मिक दृष्टि का प्रयोजन पर से निवृत्ति कर शाश्वत सुख की प्राप्ति कराता है। निश्चय और व्यवहार नयों में भूतार्थ ग्राही होने से निश्चय को भूतार्थ और अभूतार्थ ग्राही होने से व्यवहारनय को अभूतार्थ 51 कहा है। अभूतार्थ तो निश्चय नय की अपेक्षा है। स्वरूप और प्रयोजन की 15 अपेक्षा नहीं उसे सर्वथा अभूतार्थ मानने से बड़ी आपत्ति दिखती है। श्री अमृत चन्द्राचार्य ने गाथा नं. 46 की टीका में सुदृढ़ और परिस्फुट भाषा में इसका । 51 उल्लेख एवं समर्थन किया है। वे कहते हैं "व्यवहार के बिना परमार्थ नय LF से जीव शरीर से सर्वथा भिन्न बताया है। इस स्थिति में जिस प्रकार भस्म आदि अजीव पदार्थों का निःशंक उपमर्दन करने से हिंसा नहीं होती उसी प्रकार त्रसस्थावरों का उपमर्दन करने से हिंसा नहीं होगी। और हिंसा के बिना बंध का अभाव हो जायेगा । बंध के अभाव में संसार का अभाव हो जायेगा। संसार के अभाव में मोक्ष का अस्तित्व संभव नहीं।" सम्पूर्ण समय सार में शुद्ध नय दृष्टि से आत्मा के दिग्दर्शन का प्रयत्न द किया है। आत्मा और पर पदार्थ में जो एकता की भ्रान्ति होती है उसका एक कारण पर पदार्थों के साथ आत्मा के षट्कारक का प्रयोग भी है। आचार्य ने इस भ्रान्ति को दूर करने के लिये कर्ता कर्माधिकार समयसार में दिया है और यह सिद्ध किया है कि आत्मा का पर द्रव्य के साथ कोई कर्ता, कर्म या अन्य कारक स्वरूप से संबंध नहीं है। वे लिखते हैं आत्मस्वभावं परभाव निम्नमापूर्णमाथन्स विमुक्त मेकम्। विलीन संकल्प विकल्प जालं प्रकाशयन शुद्ध नयो मुपैति। आचार्य श्री कुंद-कुंद स्वामी ने सभी क्षेत्रों में स्याद्वादाधारित समन्वय जवाद का निरूपण किया है। जीवाजीवाधिकार में श्री कुंद-कुंद स्वामी ने F -1468 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 54545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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