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________________ 151494949464545454545454545454545 हिन्दी रचनाएं 1. आदीश्वर फाग 2. जलगालन रास पोसह रास 1-4. षट्कर्म रास -15. नागदा रास 6. पंचकल्याणक हमें अभी तक ज्ञानभूषण की पंचास्तिकाय उपलब्ध नहीं हुई है। भट्टारक शुभचन्द्र जी भट्टारक सकलकीर्ति जी की शिष्य परम्परा में भट्टारक विजयकीर्ति के TS शिष्य भट्टारक शुभचन्द्र अपने युग के प्रभावक भट्टारक थे। भट्टारक सकलकीर्ति के समान श्री शुभचन्द्र संस्कृत, प्राकृत के प्रचण्ड विद्वान् थे। सरस्वती की उन पर विशेष कृपा थी। काव्य रचना करना उनके लिये सरल कार्य था। संस्कृत में उनकी लेखनी धारा प्रवाह चलती थी। वे षटभाषा -कवि-चक्रवर्ती कहलाते थे। छह भाषाओं में संभवतः प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती एवं मराठी होंगी। शुभचन्द्र जी का संवत् 1530-40 के मध्य जन्म हुआ। उन्होंने व्याकरण एवं छंदशास्त्र में निपुणता प्राप्त की। वे भट्टारक ज्ञानभूषण एवं श्री विजयकीर्ति के संपर्क में आये। श्री विजयकीर्ति के चरणों में रहने लगे तथा अपनी व्युत्पन्नमति, वक्तृत्व-कला, साहित्य-निर्माण-कला का परिचय देने लगे। इसीलिये भट्टारक विजयकीर्ति के पश्चात् इनको भट्टारक जैसे सर्वोच्च सम्मानित पद पर बैठाया गया। भट्टारक शुभचन्द्र जी का शास्त्र ज्ञान अलौकिक था। एक पट्टावली के अनुसार ये प्रमाण परीक्षा, पत्र परीक्षा, परीक्षा मुख, प्रमाण निर्णय, न्यायमकरंद, न्यायकुमुदचन्द्र, न्यायविनिश्चय, श्लोकवार्तिक, राजवार्तिक, प्रमेयकमलमार्तण्ड, आप्तमीमांसा, अष्टसहस्री, चिंतामणि मीमांसा, तत्वकौमुदी जैसे न्याय ग्रंथों के तथा जैनेन्द्र, शाकटायन, ऐन्द्र, पाणिनी, कातन्त्र आदि व्याकरण ग्रंथों के महान् अध्येता थे। ये ज्ञान के महान भंडार थे। अब तक TE इनकी 40 संस्कृत रचनायें, एवं 7 हिन्दी-राजस्थानी रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं। इसलिये संस्कृत ग्रंथों के रचना करने वालों में भट्टारक शुभचन्द्र जी का नामा प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर भणी स्मृति-ग्रन्थ 459 14545454545454554654
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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