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159455476547457454545454545454545 14. गाम्भीर्य और स्थैर्य गुणों से युक्त होना।
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5. वज के समान कठोर मन वाला होना। 6. संकट के समय न घबराना। 7. शत्रु पर आक्रमण करने के लिए तैयार होना। 8. उत्साही होना।
एक अन्य स्थान पर सुयोग्य मंत्रियों की राजनीति में कुशलता, सरलबुद्धि. कुलक्रमागत खोटे कमों से विमुख एवं वृद्धावस्था में विद्यमान होना रूप गुणों का कथन हुआ है। मंत्रियों की नियुक्ति-मंत्रियों की नियुक्ति राजा करता था। गद्यचिन्तामणि के दशम लम्भ में राजा द्वारा महामात्र (महामंत्री) की नियुक्ति के किए जाने का उल्लेख हुआ है।
अन्य अधिकारी-मंत्रियों के अतिरिक्त अन्य अधिकारियों में राजश्रेष्ठी. 4 प्रतीहार, महत्तर, दौवारिक', आरक्षक, कराधिकृत, दैवज्ञ' (ज्योतिषी), TE सौविदल्ल' (कंचुकी), पुरोधस' (पुरोहित), चाण्डालाधिकृता, भाण्डागारिका ना तथा चमूपति के नामों का उल्लेख किया गया है। 4 कोष और उसकी उपयोगिता-प्राणियों को निरन्तर अपने कोष की वृद्धि
करना चाहिए; क्योंकि दरिद्रता (निर्धनता) जीवों का प्राणों से न छुटा हुआ | मरण है। मनुष्यों को यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे पिता और पितामह प द्वारा संचित बहुत धन विद्यमान है; क्योंकि वह धन अपने हाथ से संचित T- धन के समान उदात्तचित्त मनुष्य के चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न नहीं करता अथवा
करे तो भी आय से रहित धन अविनाशी नहीं हो सकता है। निरन्तर उपभोग होने पर पर्वत भी क्षय हो जाता है। निर्धनता से बढ़कर मर्मभेदक अन्य वस्तु नहीं हो सकती है। निर्धनता शस्त्र के बिना की हुई हृदय की शल्य है। अपनी प्रशंसा से रहित हास्य का कारण है, आचरण के विनाश से रहित उपेक्षा का कारण है, पित्त के उद्रेक के बिना ही होने वाला उन्माद सम्बन्धी अन्धापन
है और रात्रि के आविर्भाव के बिना ही प्रकट होने वाली अमित्रता का निमित्त 1 है। दरिद्र का न वचन जीवित रहता है, न उसकी कुलीनता जागृत रहती
है, न उसका पुरुषार्थ दैदीप्यमान रहता है, न उसकी विद्या प्रकाशमान रहती है, न शील प्रकट होता है, न बुद्धि विकसित रहती है, न उसमें धार्मिकता
की सम्भावना रहती है, न सुन्दरता देखी जाती है, न विनय प्रशंसनीय होती 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ
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