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________________ 45454545454545454545454545454545 1 महासागर की निन्दा की गई है। शुकनाशोपदेश में लक्ष्मी की निन्दा है. गद्यचिन्तामणि में भी लक्ष्मी की निन्दा की गई है। शुकनाशोपदेश में राजकीय अवगुणों का वर्णन कर उनसे दूर रहने का उपदेश दिया गया है। गधचिन्तामणि में भी राजाओं के स्वरूप तथा उनके औदृत्य का वर्णन है। वादीभसिंह और कालिदास-वादीभसिंह की कई कल्पनायें अथवा विचार कालिदास के समान हैं। जैसे 'अथवा भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।। अभिज्ञानशाकन्तल अर्थात् भवितव्यता के द्वार सब जगह होते हैं। अचिन्त्यानुभावं हि भवितव्यम् ।। गद्यचिन्तामणि चतुर पृ. 208 भवितव्य की महिमा अचिन्त्य है। कालिदास ने मेघदूत में कल्पना की है कि मेघ जब गगा के जल को ग्रहण करने के लिये झुकेगा तो उसकी श्यामवर्ण परछाईं के कारण उस स्थान की शोभा गंगा यमुना के सङ्गमस्थल जैसी होगी। गद्यचिन्तामणि में गन्धर्वदत्ता के कौतुकागार का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जलती LE हुई कालागुरु के धूम के समूह से चित्रित अतएव यमुना के समागम से श्याम गङ्गानदी के प्रवाह के समान रेशमी चॅदोवा से उसका ऊपरी भाग सुशोभित था। जवादीमसिंह और भारवि वादीभसिंह ने भारवि के किरातार्जुनीयम को देखा था। भारवि अर्थ गौरव के लिए संस्कृत साहित्य में विशेष प्रसिद्ध हैं। हो सकता है भारवि के अर्थ गौरवमयी वाक्यों से प्रेरित होकर ही वादीभसिंह को छत्रचूडामणि जैसा सूक्ति काव्य लिखने की प्रेरणा मिली हो। किरातार्जुनीयम - में युधिष्ठिर की विषम स्थिति का वर्णन करती हुई द्रौपदी कहती हैं पुराधिरूढ़ः शयनं महाधनं विबोध्यसे य: स्तुति गीतिमंगलैः। अदादभमिधिशय्य स स्थली जहासि निद्रामशिवः शिवारुतैः।। -किराता. 1/38 अर्थात् जो आप पहले बहुमूल्य शय्या पर शयन करते हुए स्तुति-गीति आदि मङ्गलमय शब्दों के द्वारा जगाए जाते थे, वहीं आप आज बहुत से कुशाओं से युक्त वन भूमि पर सोकर अमङ्गलकारी सियारनों के शब्दों से नींद त्याग रहे हैं। गद्यचिन्तामणि के द्वितीय लम्भ में जीवन्धर के जन्म के समय की विषम 545454545454545454545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 416 545559455454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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