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________________ 11454545454545454545454545454514 घातांकों का उपयोग (Ure of Indices) धवला के अनेक प्रकरणों में घातांकों के अनेक उपयोग और परिकलन दिये गये हैं। पर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्यों की संख्या कोड़ा-कोड़ी-कोड़ी तथा कोड़ा-कोड़ी-कोड़ी, कोड़ी (1 करोड़ =10') के बीच बताई जाती है। इसका सामान्य अर्थ (10) = 101 और (107) = 108 के बीच आती है। इसकी व्याख्या में धवला में इन्हें 22° एवं 2' के समकक्ष बताया है। फलतः यह संख्या 109-10 के बीच आती है। जैन ने इस संख्या को 29 अंक प्रमाण परिकलित किया हैं पर उन्होंने सामान्य राशि के लिये जटिल अर्थ लेने के वीरसेन के प्रयत्न की व्याख्या नहीं की जो आवश्यक है। वीरसेन ने इसी प्रकार एक अन्य घात संबंधी परिकलन दिया है : 2'22 - 226 इन तथा अन्य परिकलनों से घातांक संबंधी निम्न सूत्र प्रकाशित होते ____xx4° 3x (a+b) 2. xx4 = x (a-b) 3. (x) = xab 51 इनके अतिरिक्त अन्य नियम भी उद्धघाटित किये जा सकते हैं। जैन ने बताया है कि घातांक संबंधी धवलागत विवरण पांचवीं सदी से पूर्व का तथा प्रारंभिक प्रतीत होता है। इसके अंतर्गत वर्ग, वर्गवर्ग, वर्गमूल, घन, घन-घन, घनमूल, स्वघात, वर्गमूलमूल, घन-मूल-मूल आदि के घात समाहित होते हैं। ज्यामितीय गणित गणित के प्रारंभिक विकास के समय गणित शास्त्र आज के समान अनेक शाखाओं में विभक्त नहीं था फिर भी अंकगणित के समान क्षेत्रमितीय गणित भी पर्याप्त प्रचलन में था। पांच प्रकार की आकृतियों के क्षेत्रमितीय परिकलन किये जाते हैं। मध्यलोक की गोलाकार मान्यता के कारण वृत्तीय क्षेत्र का गणित विकसित हुआ। बहुआयामी क्षेत्रों के साथ आयतन, विषम आदि 15 के सूत्र विकसित हुए। यद्यपि त्रिलोकप्रज्ञप्ति की तुलना में धवला में क्षेत्रगणित कम है, फिर भी उसमें कछ विशिष्ट प्रकरण आये हैं। इनमें से तीन यहां - दिये जा रहे हैं : 11 पाइ (P) का मान : वृत्तीय क्षेत्र के विवरण को जानने के लिये उसकी परिधि व्यास या अर्धव्यास के अन्योन्य संबंधों का ज्ञान आवश्यक है। - | प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 380 959595959595955555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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