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________________ फफफफफफ 55555555555फफफ को 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' भावना की प्रेरणा देती है। 3. चारित्राधिकार - पडिवज्जदुसामण्णं जइ इच्छइ कम्मपरिमोक्खं" अर्थात् 'यदि कर्मबन्धन से मुक्ति चाहते हो तो श्रामण्य अङ्गीकार करो' का उपदेश मृत्यु से अमरता की ओर इंगित करता है। चारित्र ही मोक्ष का उपाय, श्रमणत्व-प्राप्तिक्रम, निर्ग्रन्थ लिंग की मोक्षसाधकता, श्रमण की चर्या, 28 मूलगुण, छेदोपस्थापन, अप्रमाद रूप ही अहिंसा, स्त्री के मोक्षप्राप्ति का निषेध, उत्सर्ग- अपवाद की मैत्री, मुनि के सराग एवं वीतराग चारित्र का वर्णन (गाथायें 75) मृत्योर्मामृतं गमय इस भव्येच्छा' की स्पष्टता का सूचक है। प्रवचनसार की उपर्युक्त त्रिलक्षणता अन्य मतों से तुलनात्मक चिन्तन एवं शोध का विषय है। यहाँ मात्र संकेत प्रस्तुत किया है। 555555555555555555555 आ. कुन्कुन्द स्वामी ने शुद्ध आत्म स्वरूप 'समयसार' की पात्रता निर्माण करने हेतु सम्पूर्ण साधन रूप 'प्रवचन सार' प्रणीत किया है। इसका बिना पालन किए 'समयसार' में गति नहीं है। यह बहुआयामी कृति है। यहाँ हम इसके अन्तर्गत उपयोग की चर्चा करेंगे। आ. कुन्दकुन्द ने कहा है :"परिणमदि जेण दव्वं तक्कालं तम्मयं ति पण्णत्तं । तन्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेदव्वो ।।8।। जीवो परिणमदि जदा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो । सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणाम सम्भावो ।।9।।" द्रव्य जिस समय पर्याय रूप से परिणमन करता है उस समय वह उससे तन्मय होता है ऐसा जिनागम में वर्णित है। अतः धर्म रूप से परिणत आत्मा को स्वयं धर्म समझना चाहिए। जब जीव परिणमनशील होने के कारण शुभ-अशुभ या शुद्ध रूप से परिणमन करता है तब स्वयं शुभ-अशुभ या शुद्ध होता है। अर्थात् जीव तीनों उपयोगों से तन्मय है एकीभूत है। यह परिणाम द्रव्यान्तर नहीं है। यहाँ स्पष्ट है कि धर्मी और धर्म एक वस्तु है। जो पर्याय को द्रव्य से सर्वथा त्रिकाल भिन्न मानते हैं उनके लिए आ. कुन्दकुन्द की ये गाथायें द्रष्टव्य हैं । अन्दर आत्मा और उसके गुण शुद्ध हों और पर्याय मात्र में अशुद्धि हो, यह मान्यता ठीक नहीं। यह तो सांख्यमत का ऐकान्तिक दृष्टिकोण है। समयप्राभृत में जीव को रागद्वेष से भिन्न कहा है वह शुद्ध स्वरूप के ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का कथन है। अशुद्ध निश्चय भी निश्चय नय हैं। जो वर्तमान विकारी परिणति को विषय करता है। उसकी दृष्टि में जीव 5 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृतिग्रन्थ 343 फफफफफफफफफफफ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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