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________________ 955555555555555555555555 4 अन्य पद्यों की ही तरह टीका करके इनके मूल में समाविष्ट होने की पुष्टि की है। इस ग्रंथ को जैनेन्द्र सिद्धांत कोशकार व अन्य कुछ विद्वानों ने पता नहीं किस आधार पर 'अपभ्रंश' भाषाबद्ध बताया है, जबकि यह ग्रंथ 1922 ई. में ही मल रूप में प्रकाशित हो चुका था। ग्रंथ की शैली - प्रसादगुण युक्त तथा प्रवाहमयी है। "भ्रात! सखे!" आदि संबोधनों से इसमें बातचीत रूप उपदेश जैसा पुट मिलता है, जो कि विषय प्रतिपादन को और अधिक जीवन्त बना देता है। इस ग्रंथ में वसंततिलका (37 पद्य). मालिनी (29 पद्य) स्रग्धरा (6 पद्य), र्दूलविक्रीड़ित (3 पद्य), शिखरिणी (1 पद्य). उपजाति (1 पद्य), मंदाक्रांता (1 पद्य), तथा अनुष्टुप् (1 पद्य) इस प्रकार कुल मिलाकर 9 प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है। अमृताशीति के टीकाकार-अमृताशीति ग्रंथ पर अभी तक एकमात्र टीका प्राप्त हुई है। ग्रंथ की प्रशस्ति में 2 पद्यों के द्वारा टीकाकार ने अपना नाम 'व्रतीश (आचार्य) बालचन्द्र अध्यात्मी' तथा अपने गुरु का नाम 'सिद्धांतचक्रेश्वर-चरित्र चक्रेश्वर नयकीर्तिदेव बताया है। सिद्धांत चक्रवर्ती नयकीर्तिदेव मूलसंघ, देशीयगण पुस्तक गच्छ व कुंदकुंदावय के आचार्य गुणचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती के शिष्य थे। इनकी शिष्य मण्डली में मेघचन्द्रवतीन्द्र, मलधारी स्वामी, श्रीधर देव, दामनन्दि त्रैविद्य, भानुकीर्ति मुनि, बालचन्द्र अध्यात्मी, माघनन्दि मुनि, प्रभाचन्द्र मुनि, पद्मनन्दि मुनि और नेमीचन्द्र मुनि के नाम मिलते हैं। इनका स्वर्गवास शक संवत् 1099 (सन् 1177) में वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, शनिवार को हुआ था। श्रवणबेलगोल के बीसों शिलालेखों में इनकी व इनके शिष्यों की प्रशंसा प्राप्त होती है। महामंत्री हल्ल नागदेव आदि शिष्यों ने इनकी स्मृति में जो स्तम्भ स्थापित किया था वह चन्द्रगिरि पर्वत पर आज भी विद्यमान है। नयकीर्ति देव के शिष्यों में बालचन्द्र अध्यात्मी प्रमुख थे। आपके द्वारा विरचित समस्त टीकायें कन्नड़ भाषा में हैं, किन्तु जिन । - ग्रंथों पर आपने ये टीकायें लिखी हैं, वे संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश तीनों भाषाओं में हैं। अतः स्पष्ट है कि इन तीनों भाषाओं के भी आप अधिकारी विद्वान थे। विषय के विशद विवेचन को देखते हुए सिद्धांत एवं अध्यात्म-दोनों विषयों TE में आपकी विद्वत्ता असंदिग्ध है ही। आपका स्थितिकाल ईस्वी की बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जाता है। म अमृताशीति का विषय-विषय की दृष्टि से इसका मूल विषय योग है जिसकी 4 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 3404 59595959595955555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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