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________________ 9 5955555555555 595559 श्रमण परम्परा के अमृत-पुरुष : उपाध्याय ज्ञानसागर जी परमपूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी का नाम दिगम्बर जैन श्रमण-परम्परा में विशिष्ट उज्जवलता के साथ उदित हुआ है। ज्ञान, दर्शन एवं चरित्र की निर्मल आभा, सत्य के प्रति समर्पण, आग्रहमुक्त चिन्तन, मानव जाति के कल्याण की कामना और प्राणिमात्र के प्रति तादात्म्य का अनुभव उनके अंतरंग व्यक्तित्व को विश्लेषित करने वाले तत्त्व हैं। पूज्य उपाध्याय श्री के जीवन में उदार दृष्टिकोण की सुगन्ध एवं आध्यात्म के अन्तःस्थल की प्रतिध्वनि है। आठ वर्षीय मुनिजीवन में प्रचण्ड मार्तण्ड की भाँति अकेले आलोक एवं उत्ताप विकीर्ण कर उ.प्र., म. प्र., उड़ीसा, बिहार, बंगाल, हरियाणा भारत के गाँव दर गांव क्षुधाों, पीड़ितों, व्यथितों को जीवन की नवीन राह 2 दिखाते, पथभ्रष्टों, व्यसनियों एवं कुमार्गरतों को सन्मार्ग पर लगाते हुए अपने | पुष्प जैसे कोमल एवं वज जैसे कठोर अन्तस्थल में पूर्वगामी सुधा युग को सम्पूर्ण रूप से आत्मसात् करके धार्मिकचेतना जाग्रत कर रहे हैं। हजारों-हजारों परिवार एवं युवा आपसे प्रभावित हुए हैं। जब भी समाज में । बढते जा रहे भ्रष्टाचार, दुराचार, अनाचार, कदाचार की चर्चा आपके सम्मुख आती है तो सहजता से कहते हैं-"चिन्ता नहीं, चिन्तन करो, व्यथा नहीं, व्यवस्था करो" उपाध्याय श्री युवा संत हैं, मात्र ३६ वर्ष की अवस्था में लौकिक, अलौकिक प्रत्येक क्षेत्र का सम्पूर्ण ज्ञान सहज ही कालिदास की "तपसि वयः न समीक्षते" वाली उक्ति को सार्थक कर देता है। बुन्देल खण्ड की विद्वानों की साधनास्थली एवं महापुरुषों की जन्मस्थली मुरैना की पुण्य धरा पर सन् १९५७ को उदित इस बालसूर्य को LE देख प्राची दिशा की भाँति आदरणीया मातुश्री अशर्फी बाई एवं पूज्य पिता श्री शांतिलाल जी ही धन्य हुए हों ऐसा नहीं है, उनके असाधारणत्व का F1 प्रतिपल हर्षवर्द्धक अनुभव आसपास के सभी जन करते ही रहे हैं। - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 324 1955555555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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