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________________ 4141414141414141414141414145146141 卐गांव बिनौली में विराज रहे थे। शीत ऋतु अपने यौवन पर थी। आकाश में 5 बादल थे। शीत लहर चल रही थी। कभी-कभी पानी भी आ जाता था। मैं F और डा. श्रेयान्सकुमार जैन बड़ौत से करीब प्रातः 6 बजे उपाध्यायश्री के पास FI बिनौली पहुंचे। शीत हवा से शरीर में अत्यधिक कम्पन। वहां मंदिर में गये। 51 17 देखा उपाध्याय श्री एक छोटी सी कोठरी में पट्टे पर विराजमान हैं। न घास LE और न चटाई। दर्शन करते ही उपाध्याय श्री के प्रति सहज श्रद्धा के भाव उमड़ गये। यह क्या? शीतलहर में भी वही स्वाभाविक मुद्रा जो गर्मी अथवा - अन्य ऋतुओं में रहती है। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उपाध्यायश्री से निवेदन किया कि महाराज घास भी नहीं, चटाई भी नहीं जिसका अधिकांश साधु उपयोग करते हैं। लेकिन वे कुछ नहीं बोले और मौन से ही इसी तरह की चर्या को स्वाभाविक चर्या बता दिया। सेमिनारों एवं संगोष्ठियों के प्रति झुकाव उपाध्याय श्री का विद्वानों, साहित्य सेवियों, शोधार्थियों के प्रति सहज लगाव हैं। वे विद्वानों से अधिक से अधिक संपर्क रखना चाहते हैं और विद्वानों का समागम होता रहे इसलिये वे श्रावकों को संगोष्ठियां आयोजित करने की प्रेरणा दिया ही करते हैं। वे कहते हैं कि विद्वान् समाज की धरोहर हैं इसलिये उनका संरक्षण, सम्मान एवं आतिथ्य जिनवाणी का संरक्षण एवं सम्मान है।। आपके सानिध्य में सर्वप्रथम मुंगावली में सन् 1984 में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। चंदेरी में आठ दिन का शिविर लगाया। ललितपुर में न्यायविद्या वाचना की गई तथा खनियाधाना में सेमिनार आयोजित की गई। जिसमें बहुत से विद्वानों ने भाग लिया। ये सब गतिविधियां क्षुल्लक अवस्था में चलती रही। मुनिदीक्षा भी आपकी सोनगिरि में ही हुई। इस दृष्टि से सोनगिरि सिद्धक्षेत्र ने आपके जीवन को मोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई। क्षुल्लक IT गुणसागर के रूप में आपने 11 वर्ष तक मध्यप्रदेश को प्रमुख रूप से अपना क्षेत्र बनाया। पं. श्रुतसागर जी एवं पं. पन्नालाल जी से व्याकरण एवं सिद्धान्त ग्रंथों का अध्ययन किया। क्षुल्लक अवस्था में काफी लम्बे समय तक रहने पर एक दिन आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि "गुणसागर तू कब तक इस चहर से मोह करता रहेगा।" मार्च 88 में आचार्य श्री सुमतिसागर महाराज से आपने मुनिदीक्षा प्राप्त की और कुछ महिनों तक संघ में साथ रहने के पश्चात् आचार्यश्री की स्वीकृति प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ TRIPानानानानानानानाना 11 - FIFIFIFIFIFM
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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