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इस प्रकार के कई उपसर्ग आपके जीवन में आते रहे, परन्तु धर्म की LF प्रभावना ही ऐसी होती है कि कसौटी के पश्चात् वे टल भी जाते हैं।
आध्यात्मिक प्रगति के सोपान पर
संवत् 2010 स्थल मुरैना। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय, विश्ववंद्य, महात्मन् आचार्यरत्न श्री 108 स्व. विमलसागर जी महाराज अपने पुनीत संघ सहित पधारे। आपकी धर्मपत्नी रामश्रीदेवी ने एक बार कहा-'पू. आचार्य भगवंत को आहार देने की मेरी प्रबल इच्छा है, मैं शूद्र जल का त्याग ले लूँ और आप भी ले लीजिए।
तब आपने (नत्थीलालजी ने) कहा-'तुम ले सकती हो, मुझसे नहीं जबनेगा।' रामश्रीदेवी ने शूद्र जल का त्याग किया एवं आहारदान दिया।
दूसरे दिन आपके घर पर शुद्ध भोजन बन पाया। पू. आचार्यरत्न - विमलसागर जी आहारचर्या के लिए निकले। आपके वहाँ विधि मिल गयी। HTपू. आचार्य भगवन ने इशारे से पूछा- क्या आप शूद्र जल का त्याग करेंगे? TE आपने कहा-मुझसे तो शूद्र जल का त्याग नहीं बनेगा। - पू. आचार्यरत्न लौटने लगे। उसी क्षण आपके मन में इस प्रकार के
भाव उठे, 'पू. भगवन् बिना आहार किये लौट रहे हैं। मैं कैसा अभागी हूँ, TE जैन कुल में मेरा पैदा होना न कुछ के बराबर है। फिर क्या था, आप इतने - भावविभोर हो गये कि बिना कुछ हिचकिचाए आप दृढ़ प्रतिज्ञ होकर बोले-'गुरुवर्य, आज से मुझे शूद्र जल का त्याग है।
पू. मुनिवर्य की पड़गाहना विधि हो गयी। आहारदान का अवसर आपने अपने हाथ से जाने नहीं दिया। इस प्रथमावसर ने आपके जीवन के लिए 1 एक महत्व का मोड़ दे दिया।
आप अब जैन तत्वज्ञान के प्रखर मर्मज्ञ पंडितवर्य मक्खनलाल जी । शास्त्री, पं. सुमनचन्द जी शास्त्री, पं. बालमुकुन्द जी, पं. सुखदेव जी एवं अन्य ब्रह्मचारियों के सत्समागम में रहने लगे।आप शास्त्र अध्ययन करने लगे। सही
तो है : स्वाध्यायः परमं तपः। 1 आप क्रमिक विकास करते रहे। संवत् 2021 में आपने पूज्य श्री 108 L: शान्तिसागर जी मुनिराज से दूसरी प्रतिमा अंगीकार की। इस वर्ष मुरैना में
- गजरथ पंचकल्याणक महोत्सव हुआ। इस शुभ अवसर पर पू. गुरूदेव श्री 57 108 आचार्यरत्न विमलसागर जी महाराज पधारे। आपने उनसे सातवीं प्रतिमा 477309
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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