SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 414141414141414141414514614514614545 एक जीवन यात्रा (किशोरीलाल से आचार्य विमलसागर तक) वास्तव में, निराकुलता में ही सच्चा सुख है और यह निराकुलता शिव-मार्ग - में प्रवृत्त हुए बिना सम्भव नहीं। जो शिव-मार्ग में प्रवृत्त हो जाता है, उसे सांसारिक - भोग विलास हेय लगने लगते हैं। वह इनसे विनिर्मुक्त होना चाहता है। आज L- सारे संसार की दृष्टि अपने घर की खोज करने वाले सत्यान्वेषी साधनों की ए. - ओर लगी हुई है। स्वर्गीय आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज भी ऐसे ही विश्ववंद्य सच्चे साधकों में से एक थे। ____ पौष शुक्ला द्वितीया विक्रम संवत् 1948 में मुनि श्री को जन्म देने का सौभाग्य मध्यप्रदेश के मण्डला जिला के ग्राम माहिनो को प्राप्त हुआ। जायसवाल 21 कुलरत्न सेठ भीकमचंद जी की चिरसाध पूरी हुई, क्योंकि उन्हें चार भाइयों के बीच बड़ी प्रतीक्षा के पश्चात् सौ० मथुरादेवी की कोख से किशोरीलाल नामक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। द्वितीया को जन्मा बालक द्वितीया के चांद की भांति अपने समस्त गुणों का उत्तरोत्तर विकास करता हुआ बढ़ने लगा। परन्तु क्रूर राहु बाल चन्द्र के इस विकास को न देख सका और आठ वर्ष की अल्पायु में ही उससे पिता का प्यार छीन लिया। माता मथुरादेवी पर असमय ही दुःख 57 का पहाड़ सा टूट पड़ा। लेकिन धैर्यशालिनी माता इस दुःख से विचलित नहीं LE हुई। वह तो अपने होनहार पुत्र को लेकर पीरोठ नगर में आकर बस गई तथा -वहीं उन्हें प्रारम्भिक शिक्षा दिलाई। परिवर्तन नियति का क्रम है। किशोरावस्था के विदा लेते ही अंगड़ाई F लिए यौवन का आगमन हुआ। अपने युवा बेटे का भरता-संवरता शरीर देखकर किस मां का मन खुशी से भर नहीं जाता? वह भी अपने युवा बेटे के विवाह की मधुर कल्पनाओं में खोई रहकर वैधव्य के दुःख को भुलाये TE रहती। कहावत है कि बारह वर्ष बाद धूरे के दिन भी फिरते हैं। उनके भी - दिन फिरे। पुत्र-बधू के शुभ आगमन से परिवार में एक बार फिर से हर्षोल्लास * की लहर दौड़ गई। किन्तु निष्ठुर नियति को उनका यह सुख अच्छा नहीं प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 296 555555555555555565751645155
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy