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________________ 55555555555555555555555599 卐 तक रहा। सन् 1936 में जब आपका चातुर्मास जयपुर में हुआ आपने झगड़े ) TF को सुना तो विद्वानों की जैन नगरी में ऐसी बातें क्यों? आपके उपदेश से IP समाज एकत्रित हुई और आनन-फानन में यह झगड़ा जो तीन-चार वर्षों से चलता आ रहा था शान्त हुआ। इस अवसर पर प्रसिद्ध संगीतज्ञ और बाल TE सहेली के संस्थापक संचालक मेरे पूज्य पिता श्री गैंदीलाल जी भांवसा ने 10 - अपने साथियों से चर्चा कर जयुपर के समस्त दिगम्बर जैन समाज के पुरुष वर्ग की गोठ (सहभोज) के आयोजन की घोषणा कर दी जो शहर से पूर्व + की ओर प्रसिद्ध स्थान घाट में दिन में भगवान के पूजन भजनपूर्वक सम्पन्न । ना हई। यह बाल सहेली वि.सं. 1959 में स्थापित हुई थी जो प्रति शुक्रवार को जयपुर के विभिन्न मंदिर चैत्यालयों में प्रातःकाल पूजन और सायंकाल भजन TE का आयोजन करती थी। आज भी यह बाल सहेली चालू है। मैंने स्वयं भी यह सारी बातें देखी हैं। चोमू में 60-70 घर खण्डेलवाल अग्रवाल जैनों के हैं। वहां दो शिखर TE बंद मंदिर व एक चैत्यालय है। इन मंदिरों के आमद खर्चा के हिसाब और TE एक दुकान के झगड़े ने इतना तीव्र रूप धारण कर लिया कि यह पहले समाज में दो गोठे थी, वैमनस्य बढ़ा, दो की तीन और तीन की चार पार्टियां हो ! गई। समाजो हजारों रुपया खर्च हो गया। कई सज्जनों ने झगड़ा मिटाने - का प्रयत्न किया पर मिटा नहीं। 14-15 वर्षों से झगड़ा था। आचार्य सूर्यसागर जी महाराज का सदुपदेश करीब ढाई माह तक हुआ। एक विद्यालय की स्थापना हुई उसका नाम श्री नाभिनन्दन दि. जैन पाठशाला रखा गया और | उसके मंत्रित्व का भार स्वनाम धन्य पं0 चैनसुख दास जी पर रहा। महाराज श्री ने सारे मामले को सुना व समझा और झगड़ा मिटाया। चोमू जैन समाज में एकता स्थापित की। इस पर चोमू समाज में हुए व्यक्तियों के हस्ताक्षरों से एक तहरीर लिखी गई जो दोनों मंदिर चैत्यालय और विद्यालय का सारा खर्चा एक जगह से होगा और जो इसमें विघ्न बाधा करेगा वह देव शास्त्र गुरु से विमुख होगा। कृतित्व आचार्य श्री की सबसे महत्वपूर्ण देन 'संयमप्रकाश के दस भाग हैं जो एक संग्रह ग्रंथ है। बड़ी मेहनत और खोजबीन के साथ तैयार किया गया है। पूज्य गुरुदेव चैनसुखदास जी के नेतृत्व में इसका सारा सम्पादन कार्य । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 292 . - 5454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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