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________________ 454545454545454545454545454545454 विद्वत् वर्ग ने साहित्य संरचना एवं संकलन करके भव्य जीवों का सदैव मार्ग 卐 - दर्शन किया है, लेकिन यह हमारा ही दुर्भाग्य है कि हम स्वयं उनके बताये मार्ग पर न चलकर अपना ही भविष्य अंधकारमय बनाने पर तुले हैं। उसमें किसी कर्म व भाग्य का रंचमात्र भी दोष नहीं है। क्योंकि अपना भाग्य बनाने व बिगाड़ने वाले हम स्वयं हैं। हम ही अपनी परिणाम रूपी लेखनी से अपने भाग्य में लिख लेते हैं और उसी का भुगतान जन्म-मरण के रूप में भोगते हैं। एक ग्रामीण कहावत है कि "चलनी में दूध दोहे और कर्मों को दोष देवें"। TE वास्तविकता में हम इसी कहावत को चरितार्थ करने पर तुले हैं। रोजाना की तरह एक दिन मैं जब श्री मंदिर जी में दर्शन-पूजन हेतु गया तो मेरी दृष्टि सूचनाबोर्ड पड़ी और प्रशममूर्ति, बालब्रह्मचारी आचार्य श्री TE शांति सागर (गंणी) की स्मृति में अखिल भारतीय निबन्ध लेखन प्रतियोगिता के बारे में चिट्ठी लगी देखी, उसमें जब मैंने अखिल भारतीय आचार्य ' सूर्यसागर जी महाराज का नाम देखा तो मुझे 44 साल पुरानी वि.सं. 2005 TE की घटना एकदम स्मृति में हो आई और मेरा रोम-रोम हर्ष से उल्लसित हो 1 गया। वि.सं. 2005 में जब मेरी उम्र 21 वर्ष की थी, उस समय मुझे मिलिट्री में 1000 खाकी तौलिये सप्लाई करने थे, तो एक मित्र ने कहा कि आप इन्दौर चले जाइये वहां उपलब्ध हो जायेंगे। जब उज्जैन से इन्दौर बस से शाम को सात बजे पहुंचा तो सर सेठ श्री हुकमचंद जी की नसियां जी में गया। वहाँ मुझे एक अलमारी TE उपलब्ध हो गई। प्रातः काल नसियां जी के श्री मंदिर जी में दर्शन-पूजन 1 से निवृत हो कर स्वाध्याय कर रहा था। वहाँ कुछ माता-बहिनें एकत्रित हो गई। मैंने एक वृद्धा मां जी से पूछ ही लिया यहां सर सेठ हुकमचन्द जी साहब का रहने का भवन कहाँ है, क्योंकि मैं इन्दौर पहली बार गया था। - सेठ साहब के बारे में चर्चायें अवश्य सुनता रहता था। उन मां जी ने कहा LE कि, तुकोगंज में उनका इन्द्रभवन है वे उसमें रहते हैं वहाँ जिनालय भी हैं। जब मैं पूछते-पूछते इन्द्रभवन के फाटक के पास पहुंचा और अन्दर 11 जाने लगा तो दरबान ने रोक दिया। मैंने कहा-भाई साहब! मुझे भगवान के ए दर्शन करने जाना हैं तो उन्होंने सहर्ष जिनालय की तरफ इशारा करके जाने की अनुमति दे दी। जब मैं जिनालय के पास पहुंचा तो वहां एक भवन रंगीन - कांचों का था और एक संगमरमर का बना जिनालय था। वहां ही एक कर्मचारी 1287 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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