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आचार्य श्री सूर्यसागर महाराज
द्वाविशंति कर सहन परीषह, द्वादशानुप्रेक्षा में मग्न। परम वीतरागी शान्तसूर्यमुनि, धर्मध्यान में हैं संलग्न।। "जीव मात्र को धर्म लाभ हो" रखकर यह हित-भाव विशाल। ख्याति-नाम से दूर, “सूर्य मुनि" रहते नित परमारथ काल।।
कल्याणकुमार जैन 'शशि'
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प्रशममूर्ति आचार्य, शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रन्थ
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