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________________ 555555555555555555 卐纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷卐卐卐 281 गच्छन्ति केचित्स्वर्गे केचित् सिद्धयन्ति धूतकर्मणः ।। 22 ।। || श्रावकधर्म ।। पंचाणुव्रतानि गुणव्रतानि भवन्ति त्रीणयेणम् । चत्वारि च शिक्षाव्रतानि सागार एतादृशो धर्मः ।। 23 ।। ||धर्म ऐसा नहीं होता है ।। धर्मो न पठनेन भवेत् धर्मो न । धर्मो न मय प्रदेशे धर्मो न ।। 24 ।। ।। धर्म ऐसे होता है। । रागद्वेषौ द्वौ परिहरति यः आत्मनि य वसति । सो धर्मो जिनोक्तं य पंचमगतिं ददाति ।। 25 ।। ।। मोक्ष का फल || इति अष्टगुणो देवो जराव्याधिविवर्जितश्चिरं कालम् । जिनधर्मस्य फले न च दिव्यसुखं भुक्ते जीवः ।। 26 ।। ।। धर्म का अन्तिम मंगल ।। जिने देवो जिने देवो जिने देवो जिने जिनः । दया धर्मो दया धर्मो दया धर्मो दया सदा ।। 27 ।। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज छाणी 55555555555555555 प्रथममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ நிக்கக்
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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