SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4974545454545454545454545454545 भजन जिन धर्म का डंका बजाय दिया, इन शान्ति मुद्रा वालों ने। मम ज्ञान को रस्ता बताय दिया, इन छत्तिस मूलगुण वालों ने।। इस पंचम काल के मध्य ही में, मिथ्यात्व का जोर तो खूब बढ़ा। सब भेद भाव मिटाय दिया, इन कमण्डल पीछी वालों ने.।। जब हमको मिले गुरु शान्ति छवि, हम अरज करें सब ही उनको। सब नीति का मार्ग बताय दिया, इन शान्ति मुद्रा वालों ने।। जिनधर्म का...................................।। क्रोध, लोभ, मद, मान रिपुन को, सब दाह किये निज कर्मन को। मुझे शान्ति का प्याला पिलाय दिया, इन पंच महाव्रत वालों ने।। सप्त व्यसन में लीन पड़े थे, दे उपदेश छुड़ाय दिया। दश धर्म का भेद बताय दिया, इन छत्तिस मूलगुण वालों ने।। धर्मसागर क्षुल्लक की अरजी, अब धार ले हूँ अपने चित्त में। संसार-समुद्र में डूब रहा, निकाल दिया गुरु ज्ञानी ने।। जिन धर्म का डंका बजाय दिया, इन शान्ति मुद्रा वालों ने।। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रथ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy