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प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर
महाराज (छाणी) का पूजन (द्वितीय) वीस वसु गुण मूल जे पालैं तिन्हें बहुभाव सों, दश धर्म की रक्षा करें इषु समिति धारहि चाव सों। कलि काल पंचम काल में जे नग्न दीक्षा धारहीं, तिन शान्तिसागर छाणी के पद कमल जज शिरधार हीं।। शान्तिसागर मुनि गुणी, पालें जे वसु वीस।
करि आहवानन थापि इत, पूजों पद नय शीश।। (उपस्थिति में) ॐ ही अष्टाविंशतिमूलगुणपालक परमदिगम्बरमुनि श्री शान्तिसागरचरणाने पुष्पांजलिं क्षिपेत। (अनुपस्थिति में) ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालक परमदिगम्बरमुनि श्री शान्तिसागर अत्रावतर अवतर सम्वौषट् इत्याहवाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः प्रतिस्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।। (पुष्पांजलिं क्षिपेत)
शचि निर्मल नीरा गंग नदीरा लखि अति धीरा भरि लीजे। तिहि गालि बनाई चारु मिलाई कुंभ भराई कर लीजे।। शान्त्याब्धि मुनीशा कमेन खीसा भव रुग पीसा लखि लीजे।
तिन के जुग चरणा भव भ्रम हरणा गहि तिन शरणा जजि दीजे।। ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमनिम्यो जलं निर्वपानीति स्वाहा।
मलयागिरि चन्दन दाह निकंदन कुंकुम संघन घसि कीजे। करपूर मिलाई. बहु महकाई कुंभ भराई कर लीजे।।
शान्त्याधि.. ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
शाली गंधकारी बहु अनियारी खंड निकारी कर लीजे। मुक्ता उनहींरी गंध पसारी धूलि भरु थारी भरि दीजे।।
शांत्याधि............................||
ही अध्यार्विनतिमूलगुणपालकपरमविंगम्बरमुनिश्रीजान्तिसागरमुनिभ्यो । 4261
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ दानापानाLETE EiiHiFiFIEI
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