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________________ 59595555555555555555555 44भाइयों में से मझले भाई हैं। भाइयों के नाम इस प्रकार हैं खूबचन्द, खुमान, मोतीलाल और छोटेलाल | आपका विवाह संवत् 1955 में 14 वर्ष की आयु में सरखड़ी में हुआ था। आप बचपन से ही सदाचारी थे। विवाह के समय से दो बार भोजन करना, रात्रि को पानी तक नहीं लेना और पूजन करने का आपका नियम था। आपने अध्ययन किसी पाठशाला में नहीं किया। निज | का अनुभव ही कार्यकारी हुआ है। आप घी, धातु, गल्ला और कपड़ा का व्यापार करते थे। आपके सुयोग्य दो पुत्र हैं जो कि चिंतामन और धर्मचन्द, बम्हौरी में रहते हैं। आपके वंश द्वारा रेशंदीगिर के उद्धार का कार्य हुआ है। ऐसा जैन मित्र से ज्ञात हुआ है कि आपके पूर्वजों ने यहाँ जंगली झाड़ियाँ सफाई कराके नैनागिर क्षेत्र को प्रकाश में लाया था, फिर आपके द्वारा तो पूर्ण उद्धार + हआ है। पंच कल्याणक, गजरथ आदि बड़े मेले तो आपके प्रयत्न के सफल नमूने हैं। क्षेत्र की उन्नति करना आपका मामूली कार्य नहीं था बल्कि कठोर । त्याग का फल था आपको बचपन में खमान कहा करते थे और भविष्य में तो मान खोने वाले ही निकले। आपने मिति ज्येष्ठ सुदी 5 संवत् 1948 को द्रोणागिर में मनि अनंतसागर जी और शान्तिसागर जी महाराज छाणी से । दूसरी प्रतिमा ली थी तब आपका नाम ब्र. खेमचन्द रखा। मिति आषाढ वदी 8 संवत् 1995 में अंजड़ बड़वानी में मुनि सुधर्मसागर जी से 7वीं प्रतिमा ली थी। फिर सागर में माघ मास के पर्युषण पर्व संवत् 2000 में दशवी प्रतिमा धारण की थी। संवत् 2001 से वर्णी गणेशप्रसाद जी के संघ में रहकर जबलपुर में वीर जयन्ती पर वीर प्रभू के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा ली और आपका नाम क्षुल्लक क्षेमसागर रखा गया। आपने क्षुल्लक दीक्षा से ही केश लोंच करना चालू कर दिया था। वर्णी जी तो आपके चारित्र की प्रशंसा किया ही करते थे। इसके पश्चात् आपने संवत् 2012 को श्री रेशंदीगिर गजरथ के दीक्षा कल्याणक के दिन भगवान आदिनाथ की दीक्षा के समय भगवान आदिनाथ के समक्ष मुनि दीक्षा धारण की तब उसी दिन मिति माघ सुदी 15 शनिवार को आपका नाम मुनि आदिसागर रखा गया। 55454545454545454545 मुनि श्री नेमिसागर जी महाराज सरल स्वभाव, शान्तचित्त, शरीर से कृश किन्तु तपस्तेज से दीप्त, हृदय 51 के सच्चे, परिस्थितियों के अनुकूल चलने वाले, प्रयोजन वश बोलने वाले, - | प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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