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________________ 454545454545454545454545454595145 यह सब चारित्र की विशेषता का महत्व है। सहनशीलता या उपसर्ग विजयता-आप में अपर्व है. महान कठिन से कठिन उपसगा की आप परवाह न करते हुए उन्हें बड़े ही शान्ति पूर्वक सहन करते हैं। एक समय आप बांदा से झांसी की ओर आ रहे थे। बीच में अतर्रा नामक ग्राम में आपके सम्पूर्ण शरीर से भंवर मच्छी (भोरमक्खी) लिपट गईं थीं, परन्तु आपने इस महान उपसर्ग की कुछ भी परवाह न की। दूसरी बार आज जब नरवर (ग्वालियर) से आमोल को जा रहे थे उस समय शेर ने आकर आपका सामना किया था परन्तु वहां भी विजय प्राप्त की, इसी प्रकार झाँसी के मार्ग में सामायिक करते समय गोहरा आपके बदन पर इधर-उधर फिरता रहा, परन्तु आपने कुछ भी परवाह न की और भी अनेक उपसर्ग आपने आने पर सहे हैं, विस्तार भय से यहां उल्लेख नहीं किये। ___ आपको निद्रा भी बहुत कम आती है, हमारा पूर्व में आपसे कई वर्षों तक सम्पर्क रहा है, मैं समय-समय पर जाकर गुप्तरीत्यानुसार परीक्षा करते थे, परन्तु जब कभी जाते थे तभी आप जाग्रत अवस्था में मिलते थे। विशेष कर आपका लक्ष्य आत्म ध्यान में अधिक रहता था। गहस्थी के चारित्र को समुज्जवल बनाने के लिये आप रात्रि दिवस चिन्तित रहते हैं. जहां कहीं आपका विहार होता है वहां पर श्रावकाचार का प्रचार काफी होता है और सच्चे सदगृहस्थ बनाते हैं । इस गृहस्थागार में गृहस्थ धर्म को सम्पादन करने वाली श्राविकायें होती हैं, बहुभाग श्रावकाचार का इन्हीं पर निर्भर रहता है। उन्हीं को आप उचित शिक्षा देकर व्रतादि ग्रहण करा श्रावकाचार धर्म स्वीकार कराकर उन्हें सच्ची श्राविकाएं बनाते हैं। आपका लक्ष्य विशेष कर स्त्रियों को सदाचारिणी बनाने की ओर रहता है तथा उनके संयम, शील की रक्षार्थ सतत् प्रयत्न करते रहते हैं। आपका विहार अभी 4-5 वर्षों से मालवा और मारवाड़ तथा हाड़ोती प्रांत में हो रहा है, यहाँ पर व्रत, विधान क्रिया बहुत ही उच्च और आदर्श है तथा प्रायः सर्व व्रतों का भार स्त्री लाल और छोटेलाल | आपका विवाह संवत् 1955 में 14 वर्ष की आयु में सरखड़ी में हुआ था। आप बचपन से ही सदाचारी थे। विवाह के समय से दो बार भोजन करना, रात्रि को पानी तक नहीं लेना और पूजन करने का आपका नियम था। आपने अध्ययन किसी पाठशाला में नहीं किया। 7 निज का अनुभव ही कार्यकारी हुआ है। आप घी, धातु, गल्ला और कपड़ा । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 250 - 9574945954554745746749745945146145454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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