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+ ऋषभदेव से महाराज श्री सलूम्बर चातुर्मास कर बागड़ की तरफ बिहार TE कर गये। सन् 1944 के मई मास के पूर्व आ. शान्तिसागर महाराज बागड़ी TE
प्रान्त के कुहाला गांव में पहुंचे, वहां पर जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ।
थी। प्रतिष्ठा महोत्सव के समापन होने पर दि. 5 मई 1944 को महाराज श्री - का केशलोंच हुआ. उस समय स्वास्थ्य अच्छा था। कहाला से सागवाड़ा की - । तरफ विहार किया। और परोदा, सारोदा. गांवों में ठहरते हुए महाराज श्री
दि. 12 मई 1944 को सागवाड़ा पधारे। रास्ते में बुखार प्रारंभ हो गया, शरीर - में कमजोरी आने लगी। दि. 13 मई को महाराज ने अल्प आहार लिया,
धीरे-धीरे ज्वर बढ़ता गया। आहार वगैरह छट गया या त्याग कर दिया। दि.. 17 मई 1944 विक्रम संवत् ज्येष्ठ वुदी दशमी को आपकी हालत ज्यादा खराब हो गई और डबल निमोनिया ने अपना प्रभाव डाला और पंचणमोकार का जाप करते हुए महाराज श्री के शरीर से प्राण निकल गये। शरीर पिंजर पड़ा रह गया, चेतन पंछी उड़ गया, महाराज श्री स्वर्ग सिधार गये। उपस्थित सभी मनुष्यों के आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। वह बागड़ गुजरात का सूर्य अस्त । हो गया। एक शांत स्वभावी, मंदकायी, महान तपस्वी, निस्पृह प्रशममूर्ति । साधु अपनी शिष्य परंपरा छोड़कर चले गये। काल उन्हें निष्ठुरता से उठा ले गया। उस समय क्षु. धर्म सागरजी को बुलाने पर भी समय पर नहीं आ सके। स्वर्गारोहण के समय मुनि नेमिसागर जी, ब्र. नानालालजी, श्री सेठ 51 कस्तूरचंद देवड़ीया, पं. जिन चंदजी, पं. शान्तिलाल जी, पं. धनकुमार जी : तथा हजारों नर-नारी सागवाड़ा के उपस्थित थे, अजैन अधिक थे। ___ चंदन की लकड़ी के विमान में शव को बिठाकर बड़ा भारी जुलूस बाजार से होता हुआ जयघोष करता हुआ नशियाँजी पहुँचा। नशियाँ जी में मुनिराज नेमिसागर जी ने भूमि शोधन की, वहां पर चंदन की चिता तैयार कर महाराज श्री के पार्थिव शरीर को चिता पर रखा गया। और विधिपूर्वक दाह संस्कार किया गया। देखते-देखते अग्नि की ज्वालायें महाराज श्री के शरीर को भस्म कर गई। महाराज श्री के स्वर्गवास के समाचार आंधी की तरह समस्त भारत में फैल गये। अनेक स्थानों पर शोक सभायें हुई और लोगों ने शोक संवेदना प्रकट की। कई स्थानों पर बाजार बंद रहे व जुलूस निकाले गये।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - CATााााााा
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