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________________ 1545454545454545454545454545454545 卐 करने आये। महाराज ने चातुर्मास की स्वीकृति दी और यथासमय विहार कर TE महाराज आषाढ़ की अष्टाहिनका के दिनों में ईडर पधार गये। यहां पर भगवान TE सागर ब्रह्मचारी आकर चातुर्मास में महाराज के संघ रहे। ईडर गुजरात प्रान्त का प्रसिद्ध प्राचीन शहर है, जैन समाज के 100 घर हैं तीन जिनमंदिर हैं, एक मंदिर पहाड़ पर है, कुछ गृहों में चैत्यालय हैं। मंदिरों में शिल्पकला प्रशंसनीय है। मंदिर प्राचीन और विशाल हैं। यहां पर प्रतिदिन दोनों समय सभा में महाराज श्री के धर्मोपदेश चलते थे। जैन व जैनेतर समाज के लोग धर्मलाभ उठाते थे। - द्वितीय श्रावण शुक्ला चर्तुदशी को महाराज श्री का केशलोंच हुआ, उपदेश । हुआ, धार्मिक पुस्तकें बांटी गई। यहां पर भी मरने पर छाती कूटकर रोने ! की भयंकर प्रथा थी। महाराज श्री ने बहुत प्रयत्न कर इस प्रथा को बन्द करवाया। ईडर चातुर्मास के पश्चात् महाराज श्री के विहार की कोई सामग्री क्रमबद्ध नहीं मिल सकी। अतः हम इससे आगे क्रमशः विवरण देने में असमर्थ - - SLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLS - आचार्य शांतिसागर जी महाराज (दक्षिण) का आगमन इन्हीं वर्षों में प्रतापगढ़ के निवासी बम्बई में जिन का व्यापार है, ऐसे स्वनाम धन्य धर्मात्मा सेठ संघपति घासीलाल पूनमचन्द जबेरी बहत कठिन प्रयत्न कर स्वयं चौका और घर के मनुष्यों को संघ के साथ रखते हुए चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज के संघ को दक्षिण भारत से उत्तर भारत लाये और विक्रम संवत् 1985 में श्री सम्मेदशिखर जी में अपने खर्च पर विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई। यह प्रतिष्ठा महोत्सव "न भूतो न भविष्यति" था। मैं बच्चा था, पिताजी के संघ उस प्रतिष्ठा महोत्सव में गया था और खो गया था। शांतिसागर जी महाराज का संघ बड़ा विशाल था। उस संघ में बहुत से विद्वान व तपस्वी साधु थे। सम्मेदशिखर जी की प्रतिष्ठा के पश्चात् उक्त संघ समस्त उत्तर भारत, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि में धर्म प्रभावना करते हुए कई वर्षों तक धर्म की - जागति कर संघपति सेठ द्वारा प्रतापगढ़ (राजस्थान) में शांतिनाथ अतिशय क्षेत्र के मंदिर की विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई गई। यह मेला भी उस युग में अपूर्व था। अनेक शहरों में संघ के चातुर्मास हुए। हैदराबाद में ~ . - - 7 1241 प्रशममर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - नाटा -II माना - -
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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