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________________ 5555555555555555 फफफफफफ बन्द हो गई और टूट गयी आपके ध्यान का ही प्रभाव था. उपसर्ग करने वालों ने महाराज से क्षमा मांगी, आपने सब को क्षमा कर दिया, और राज्य दण्ड से उनकी रक्षा मांगी, ऐसी हैं जैन मुनियों की उत्तम क्षमा। फिर बड़वानी से विहार कर बीच के गांवों में विहार कर इन्दौर के पास लोहारदा आये। वहां आपने जैनियों के पंक्ति भोजन में जलेबी का भोजन बनाना बंदवा कर दिया। लोहारदा से सुसारी, झाबुआ, राणापुर, थान्दाला, कुशलगढ़ आदि गांवों में विहार करते हुए आप केशयरिया जी आये। यहां पर उन दिनों मंदिर के कर्मचारी पर श्वेताम्बर जैनों का प्रभाव था, मंदिर के सिपाहियों ने महाराज का कमण्डलु छीन लिया। फलस्वरूप आपने अनशन किया, सिपाही से क्षमा मांगी। महाराज अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे, आखिर में मंदिर के अंदर कमण्डलु जाने लगा । इन्दौर में चातुर्मास फिर केशरिया जी से विहार कर बीच के बहुत से गांवों में धर्म प्रचार करते हुए प्रतापगढ़, मंदसौर होते हुए आप पुनः इन्दौर पहुंचे। सर सेठ हुकमचंद जी महाराज के परम भक्त थे। उन्होंने इन्दौर चातुर्मास में विद्वानों को रखकर महाराज श्री को पढ़ाया। आपने यहां कुछ भाषा और धर्म का ज्ञान प्राप्त किया। यहां पर इन्दौर में प्रतिदिन लश्करी मंदिर में शास्त्र सभा होती थी और सप्ताह में एक बार सार्वजनिक सभा होती थी। इस में इन्दौर के विद्वानों और पूज्य मुनि राज शांतिसागर जी के व्याख्यान व धर्मोपदेश होते थे। यहां पर चातुर्मास करने से धर्मोपदेश के अतिरिक्त विद्या अध्ययन और तत्व चर्चा का लाभ मिलने से महाराज ने इन्दौर का नाम इन्द्रपुरी रखा। श्री पं. खूबचंदजी प्रतिदिन आते और शंका समाधान कराते थे। जनता बहुत बड़ी संख्या में सभा में एकत्रित होती थी इस प्रकार इन्दौर का चातुर्मास महाराज का सफल चातुर्मास हुआ। दशलक्षण पर्व में श्री पं. माणिकचंद जी न्यायाचार्य मुरैना से एवं श्री पं. लक्ष्मीचंद जी लश्कर से आये थे, सूत्र जी के अर्थ व दशधर्मों पर व्याख्यान होते थे, श्रोताओं से सभा भरी रहती थी। यहां पर हजारी लाल जी नाम से एक भव्य व्यक्ति जो कि सरसेठ सा. हुकमचन्द जी के यहां नौकरी करते थे, आपसे दीक्षा लेकर ऐलक बने और नाम उनका सूर्यसागर रखा, आगे जाकर ये ही सूर्यसागर आचार्य के नाम 565554646-474-4-4-4 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 455-55க்கதாகக 226
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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