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________________ 459459FELFEF4F7454545454545454545 1. जब मुनि संघ आगे विहार कर रहे थे, तो किसी ने यह मिथ्या समाचार - फैला दिये कि मुनि श्री की किसी ने हत्या कर दी है। इससे समाज में गहरी - हलचल मच गयी और चारों ओर से गोरखपुर तार आने लगे। बाजार बन्द | हो गये। उपवास रखा गया। जैन समाज ने यहां शोक मनाया। इस पर अभिनन्दन प्रसाद जी ने सोचा कि मुनि महाराज की खैर-खबर का पता लगाना चाहिए। बिना पता लगाये किसी को भी समाचार देना ठीक नही। वे स्वयं मुनिश्री के पास आये और दर्शन करके वापिस लौट गये। वहां जाकर सबको समाचार दिया कि मुनि श्री ठीक है और सम्मेद शिखर जी की यात्रा पर जा रहे हैं। मुनि श्री वहाँ से गाजीपुर होते हुए गया जी के बीच में एक मुसलमान के बगीचे में ठहर गये। उस समय वहाँ एक मुसलमानों की बारात आई हुई थी। मुसलमान मुनि संघ पर हमला करने की तैयारी करने लगे। गांववालों को मालूम चलने पर उन्होंने रात्रि को आकर ब्रह्मचारियों से कहा कि साधु महाराज यहाँ से अन्यत्र चले जावें नहीं तो मुसलमान तीनों साधुओं को मार डालेंगे। ब्रह्मचारियों ने भी मुनियों से तत्काल चलने को कहा लेकिन रात्रि में ही मौन खोलकर आचार्य श्री ने कहा कि दिन निकले बिना हम यहाँ F- से नहीं जा सकते हैं। अपने साथी मुनियों से कहा कि घबराना नहीं, उपसर्ग का जीतना ही परीक्षा है। दोनों मुनियों को धैर्य दिलाया। तपस्या के प्रभाव से कुछ भी नहीं हुआ। प्रातः होते ही मुनिसंघ वहाँ से विहार कर गये। और मुसलमानों के हृदय स्वतः ही बदल गये। मार्ग में ही गया समाज संघ को अपने यहाँ ले गये। आचार्य श्री ने यहाँ के समाज में व्याप्त वैमनस्य को हटाकर सबमें सदभाव उत्पन्न किया। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संपन्न हुई। वहां से शिखर जी की ओर विहार किया। शिखरजी बीस पंथी कोठी के मुनीम एवं हजारीबाग की जैन समाज हाथी लेकर मुनिश्री के स्वागत में आये। जब आचार्य श्री ने हाथी लाने का कारण बताने को कहा तो उन्होंने निवेदन किया कि यह प्रथम अवसर है विगत 150 वर्षों में जब कोई जैन मुनि शिखर जी आये हों। इसलिए धर्म प्रभावना के निमित्त यह सब किया गया है। शिखर जी आने के पश्चात् मुनि श्री एवं वीरसागर जी दोनों शिखरजी T. की वंदना करने चले गये लेकिन पहाड़ पर ही रात्रि हो जाने के कारण वे । जल मंदिर में ठहर गये। और वहीं सामयिक करने लगे। रात्रि को श्वेताम्बरी : 207 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ - । $$45454541551561571581557415515 . - --
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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