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________________ 45454545454545454545454545454545 प, शांतिसागर जी महाराज ने भी मुरार छावणी की ओरु विहार किया। यहां मुनि श्री का प्रभाव का प्रवचन हुआ। उनके व्याख्यान से प्रभावित होकर अनेक । बन्धुओं ने शराब का त्याग कर दिया। वहाँ से मुनिश्री भिण्ड चले गये। जहां एक मेला था जिसमें भाग लेने के लिए हजारों नर नारी पहुंचे थे। जिनकी संख्या करीब 51 हजार थी। जैन भाइयों ने महाराज श्री के प्रवचन से प्रभावित होकर कितने ही नियम लिये। यहां मुनिश्री का केशलोंच हुआ। जैनाजैन लागों ने मद्य मांस खाने का त्याग किया। छना पानी पीने का नियम लिया। शान्तिसागर श्राविका श्रम खोला गया। आठ जातियों के जैन परिवार रहते 1 थे। यहाँ से मनि श्री इटावा गये। वहाँ पांच दिन ठहरे। जमना जी के किनारे । 1 एक प्राचीन मंदिर था जो पहिले जैन मंदिर था। मुनिश्री के प्रभाव से वह स्थान जैन आश्रम के रूप में हो गया। यहां प्रति वर्ष मेला भरता है। मुनिश्री के उपदेश से लोगों ने अभक्ष्य पदार्थों के खाने का त्याग किया। यहां कन्या - पाठशाला है जिसके मंत्री भगवानदास जी जैनाग्रवाल थे। कानपुर की ओर विहार प इटावा से विभिन्न गाँवों में विहार करते हुए वे कानपुर पहुंचे और फूल TE बाग में ठहरे। यहां मुनिश्री के प्रवचन में जैनों के अतिरिक्त बहुत से मुसलमान, TE - अजैन बन्धु, यूरोपियन, आर्य समाजी एक हजार के लगभग एकत्रित होते थे। +7 यहां आर्य समाजी बहुत से प्रश्न करते थे जिनका उत्तर भली भांति दिया जाता था। मुनि श्री यहां चार दिन रहे और अपनी विद्वता, त्याग एवं तपस्या की जैनाजैन जनता पर अमिट छाप छोड़ गये। बहुत से लोगों ने मांस मदिरा का त्याग करा तथा छना पानी पीने का नियम लिया। वहां से कानपुर के ही जैन गंज में गये। आने के पश्चात् आपका प्रवचन हुआ। मुनीन्द्र सागर जी सोनागिर से मुनि श्री के साथ हो गये। मुनीन्द्रसागरजी द्वारा दिगम्बरी - दीक्षा मांगने पर उन्हें सभा के मध्य मंत्र विधि सहित मुनि दीक्षा दी गयी। TE हैदराबाद की चम्पा बाई ने भी सातवीं प्रतिमा के व्रत लिये। और भी बाइयों TE ने व्रत लिये। यहां मुनिश्री 10 दिन तक ठहरे और सारे वातावरण को धर्ममय बना दिया। मुनिश्री के प्रभाव से चतुर्थ काल जैसा दृश्य दृष्टिगोचर होने लगा। TE कानपुर से दोनों मुनि बाराबंकी आये। तथा दो दिन ठहरने के पश्चात् टिकैत । 21 नगर की ओर विहार कर दिया। यहां तीन दिन ठहरे। ब्र. शीतलप्रसाद जी भी यहां आये और आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर अजैन भाइयों ने मांस 205 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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