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________________ 55555555 छानकर पीने का नियम लिया । 5555555 आचार्यश्री किसी भी आचार्य के साथ रह लेते थे। व्यावर में वे और चारित्र - चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी दक्षिण पूरे चातुर्मास साथ-साथ रहे लेकिन कभी कोई विचार भेद नहीं हुआ। दोनों एक दूसरे आचार्य का सम्मान करते थे। उसी तरह आचार्य कुंथुसागरजी के साथ अपने संघ सहित ऋषभदेव एक साथ रहे । प्रतिदिन दोनों आचार्यों का साथ-साथ धर्मोपदेश होना, उनमें सह-अस्तित्व की भावना को प्रदर्शित करता हैं। आचार्यश्री जैन संघ को जोड़ने की भावना से ओतप्रोत थे इसलिये वे समाधिमरण के पूर्व तक उसी विचारधारा के समर्थक रहे। एक कवि ने उनके व्यक्तित्व पर निम्न पंक्तियों में प्रकाश डाला है कोटि-कोटिशः नमन तुम्हें है ये गुरु जग के हितकारी, मुनि प्रथा जिन विस्तारी, शान्ति दिवाकर छाणी के. मन वीणा चमत्कृत हो उठती, अर्चन कर वाणी के । जब उनका समाधिमरण हुआ तो चारों ओर दुख छा गया। विभिन्न कवियों ने कविताओं के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। एक गुजराती कवि हीराचन्द उगरचन्द शाह ने निम्न पंक्तियों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित कियेश्री शान्तिसागर जे दीपक उज्ज्वल हतो मेवाड़या अपने सूक्ष्म महाचिन्तन से आँखों में सागर है वे वे छोडी ने कीर्ति सु उज्ज्वल सीधाल्या के स्वर्गमां । शान्तिसागरजी आवलो एवी अरज करना हमें अति अष्टद्रव्यो भावली पूजा प्रभू भणीए अमे ।। इसी तरह एक अन्य कवि ने लिखा है कि अस्त सूर्य हुआ हमारा, प्रकाश बिन हम क्या करें। कैसे बतायें गये गुरुवर, राह में हम भूले परे । बीच समुद्र में डूबे हुये थे, खड़कवासी हम सभी । नक्षत्र बनकर तारते थे, नाव हमारी डूब गई ।। क्षुल्लक धर्मसागरजी महाराज ने एक भजन उनकी स्मृति में लिखा था । उसकी चार पंक्तियाँ इस प्रकार हैं सागवाड़ा के मध्य में जिन दीक्षा को धार के आदिनाथ अवतार । कीनों देश सुधार । 555555555555 177 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 卐卐卐卐卐卐卐5555555卐卐
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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