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________________ 5555555555555 55555 卐 समाधिमरण कुहाला (बांसवाड़ा) में दिनांक 24 अप्रैल, 1944 से 5 मई 44 तक जिन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आचार्य शान्तिसागरजी छाणी एवं आचार्य कुन्थुसागरजी दोनों के सानिध्य में सानन्द सम्पन्न हुआ था। समापन के दिन आपने केशलोंच किया, तब तक आपका स्वास्थ्य उत्तम था। उसके पश्चात् आपने कुहाला से सागवाड़ा की ओर विहार किया। पाटोदा, सारोदा होते हुए महाराजश्री 12 मई 1944 को सागवाड़ा बोर्डिंग में पधारे। महाराज श्री को मार्ग में ही बुखार आ गया था और शरीर में कमजोरी आ गई थी। 13 मई को आचार्य श्री ने अल्पाहार किया। महाराज श्री की इच्छानुसार क्षुल्लक धर्मसागरजी को तार देकर बुलाया, किन्तु तार तीन दिन बाद मिलने से वे समय पर नहीं पहुँच सके। लेकिन गलियाकोट से मुनि नेमिसागर जी खबर मिलते ही सागवाड़ा पधारे तथा आचार्य श्री को दशभक्ति आदि सुनाई। 15 मई को आचार्य श्री ने चतुर्विध आहार का त्याग कर दिया और आत्मध्यान में लीन हो गये। 17 मई, 1944 को मध्यान्ह 1.15 बजे णमोकार मंत्र बालेते-बोलते आत्मोत्सर्ग किया। समाधिमरण के समय मुनि नेमिसागरजी, ब्र. नानालाल जी, पं. कस्तूरचंद देवडिया, पं. जिनचन्द्रजी, पं. धनकुमार जी आदि उपस्थित थे। हजारों नर-नारी बोर्डिंग में एकत्रित हो गये थे। वे जयघोष कर रहे थे । अष्टद्रव्य से पूजा की गई। देह को विमान में विराजमान करके शहर में जुलूस निकाला गया। जुलूस शहर से बाहर नशियाँजी गया। वहाँ मुनि मिसागरजी ने भूमि शोधन किया फिर विधिपूर्वक चन्दन, कपूर और श्रीफल से निर्मित चिता पर उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। आचार्य श्री के समाधिमरण के समाचार सुनते ही सारे देश में शोक छा गया। जिसने भी समाधिमरण के समाचार सुने, वही शोक विह्वल हो गया। गाँव-गाँव एवं नगर-नगर में सभायें हुई। सारा बागड़ प्रदेश शोक स्तब्ध हो गया। जिन आचार्यश्री के सानिध्य में प्रदेश के सारे धार्मिक समारोह सानन्द होते थे, जिनकी प्रेरणा से कितने ही विद्यालय खुले, बोर्डिंग हाउस खुले, सामाजिक बुराईयों को जड़ से उखाड़ दिया, महिलाओं को कितनी ही कुरीतियों से बचाया गया, उनकी शिक्षा के लिये विद्यालय खुलवाये गये, परमगुरु आज सबको रोता-बिलखता छोड़कर चले गये थे । अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें उनके सानिध्य में हुईं और छाणी ग्राम, उसके तो 175 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ தததததததததததததத
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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