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आचार्य श्रीशान्तिसागर (छाणी) महाराज की
परम्परा के समर्थ आचार्य 15 आचार्यश्री शान्तिसागरजी छाणी महाराज के चातुर्मास
___ ब्रह्मचारी बनने के उपरान्त विक्रम संवत् 1976-77 एवं 78 तदनुसार ई. सन् 1919-20 और 21, इन तीन वर्षों तक केवलदासजी गोरेला और ईडर के आस-पास ही भ्रमण करते रहे। चातुर्मास में एक जगह रहने के बाद वे भ्रमण ही करते थे। किसी एक स्थान पर बँधकर अधिक समय फिर वे नहीं रहे। इसी अवस्था में चौथे वर्ष संवत् 1979 सन् 1922 का चातुर्मास परतापुर में हुआ, जहाँ उन्होंने क्षुल्लक का पद अंगीकार कर लिया। अगले चातुर्मास में सागवाडा में उन्होंने स्वतः प्रेरित मुनि-दीक्षा प्राप्त कर ली। यह संवत् 1980-सन् 1923 की बात है। इसके बाद निर्ग्रन्थ अवस्था में उनके बीस चातुर्मास और हुए जिनकी तालिका इस प्रकार हैक्र. विक्रम संवत् ईस्वी सन् चातुर्मास का स्थान 1981 1924
इन्दौर 1982 1925
ललितपुर 1983 1926 गिरीडीह (आचार्य पद प्राप्त) 1984 1927
परतापुर (बाँसवाड़ा) 1985
1928 1986 1929
सागवाड़ा 1987 1930
इन्दौर 1988 1931
ईडर 1989 1932
नसीराबाद 1990 1933
व्यावर 1991 1934
सागवाड़ा 1992 1935
उदयपुर 1993 1936
ईडर 1994 1937
गलियाकोट 1995 1938
पारसोला 1996 1939
भिण्डर 4173 173
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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