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17 संक्षिप्त, सूचनात्मक जीवनी लिखाने का अभिप्राय उपाध्यायश्री ने व्यक्त - किया। अधिकृत सामग्री और सूचनाओं के अभाव में यह कार्य अत्यन्त कठिन
था। इतिहासरत्न डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल ने इस दुरूह कार्य को सम्पन्न करने का निश्चय किया और भारी परिश्रम के बाद यह संक्षिप्त जीवनी उन्होंने लिखकर तैयार की। प्रसन्नता की बात है कि डॉ. कासलीवाल के परिश्रम से छाणी महाराज के विस्मृत प्रायः जीवन-वृत्त की बिखरी कड़ियों ने एक सुन्दर माला का रूप ग्रहण कर लिया है। विश्वास किया जाना चाहिए कि डॉ. कासलीवाल का यह परिश्रम बहुतेरे साधकों के लिए दीर्घ समय तक प्रेरणा का स्रोत बनता रहेगा।
स्मारिका का विमोचन होने के उपरान्त भी सामग्री की शोध-खोज बराबर चलती रही और अभी भी उसके प्रयास जारी हैं। सौभाग्य से छाणी महाराज के एक सुधी-शिष्य ब्रह्मचारी भगवानसागरजी द्वारा पैंसठ वर्ष पूर्व लिखा हुआ आचार्यश्री का अधूरा जीवन-चरित किसी शास्त्र-भण्डार से ढूंढ निकाला गया। यह जीवनी एक छोटी पुस्तिका के रूप में गिरिडीह के ब्र. आत्मानन्दजी ने सन् 197 ई. में लखनऊ के शुक्ला प्रिटिंग प्रेस से छपवाकर प्रकाशित की थी। आचार्यश्री के जन्म से लेकर उनके आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये जाने तक की प्रामाणिक जानकारी इस पुस्तक में अंकित है। इस छोटी सी जीवनी के माध्यम से ऐसे अनेक प्रसंगों की जानकारी मिलती है, जो छोटे होकर भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि यह पुस्तिका डॉ.
कासलीवाल और पं. महेन्द्रकुमारजी "महेश" के सामने होती तो निश्चित -1 ही इन दोनों विद्वानों का लेखन अधिक विस्तृत होता। यह जीवनी आज भी पूर्णतः प्रासंगिक है।
महापुरुषों के जीवन की कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो तात्कालिक 71 रूप से छोटी या महत्त्वहीन लगती हैं परन्तु उनके प्रभाव दूरगामी होते हैं।
कठिनाई यह है कि ऐसी घटनाओं का जीवन्त अंकन कोई समकालीन लेखक
ही कर सकता है। बाद के लेखक उसे वैसे प्रभावक ढंग से नहीं लिख सकते। 51 यदि वह समकालीन लेखक शिष्य या भक्त हो तब तो कहना ही क्या है।
ब्र.भगवानसागर जी छाणी महाराज के ऐसे ही समर्पित भक्त और शिष्य थे इसलिये उनके लेखन में प्रमाणिकता के साथ-साथ आख्यान जैसी रोचकता भी है। वह छोटी सी पुस्तिका उनकी गुरु भक्ति का ज्वलंत प्रमाण है।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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