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________________ शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतबार है।। (3) स्वप्न में भी शिखरजी की वंदना करते रहे। बाहुबली के दर्श पाकर प्रेरणा लेते रहे। तीर्थ केशरिया में पा दर्शन जिनेश्वर 'आदि' के। यम-नियम में बँध गये व्रत ले लिए ब्रह्मचर्य के। पिता ने चाहा कि बेटा व्याह कर वधू लायेगा। कहा बेटा ने वधू ऐसी को लेकर आयेगा मोक्ष लक्ष्मी वधू का जो बन गया भरतार है। शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतबार है। मन प्रफुल्लित हो गया निर्वाण भूमि दर्श पा। व्रत लिया ब्रह्मचर्य का लुंचन किया निज केश का। आत्म-प्रक्षालन के संग पथ धर्म का उज्ज्वल किया। आदि जिनके चरण में क्षुल्लक का व्रत धारण किया। उन्हीं प्रभु के चरण में धारा दिगंबर वेश है। शांतिसागर बनके केवल पार गया निजवेश है। सिंह वृत्ति धारकों को नमोस्तु शतवार है। शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतबार है।। 5) एक सागर शांति का मरुभूमि में लहरा गया। दूजा सागर शांति का दक्षिण को पावन कर गया। उत्तर से दक्षिण तक फिर से धर्म-ध्वजा लहराई। सत्य-अहिंसा परम धर्म की गूंज उठी शहनाई। पशु-बलि देने वालों के अन्तर ही बदल दिए। क्रूर-हृदय में पुष्प-प्यार के तुमने खिला दिए। दानव के द्वारे बाँधे मानवता बंधनवार है शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतबार है। (6) मुनि विहार पर लगी रोक को निर्भयता से तोड़ा। म प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 109 545454545454545454545454545545555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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