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________________ 15454545454545454545454545454 व का पलटी रेखा भाग्य की "ऋषभ देव" "केशरिया" अपि जन जन श्रद्धा धाम है।3।। श्रेष्ठ मार्ग निर्ग्रन्थ जान ली, ब्रह्मचर्य व्रत आखड़ी हुए अचंभित सभी कुटुम्बी बात व्याह की ना बैठी जा पहुँचे सम्मेद शिखर जी सिद्ध क्षेत्र ललाम है।4।। पार्श्वनाथ की टोंक वंदना करके निश्चय ठान ली छोड़ परिग्रह केश-लौंच कर दीक्षा की विधि जान ली आदिनाथ के सम्मुख क्षुल्लक बने "गढी" शभ गाम है।1511 संवत् था उन्नीसौ अस्सी वृषभदेव के सामने नगर सागवाड़ा में ले ली मुनि की दीक्षा आपने बने प्रथम आचार्य दिगम्बर जिनका छाणी नाम है।1611 पिच्छी और कमण्डलु लीए आप स्वयं ही हाल में गांव-गांव में पैदल घूमे चले गृहस्थी साथ में पान कराया धर्मामृत का और नहीं कुछ काम है।7।। ज्ञान ध्यान तल्लीन तपस्वी सागर से गंभीर हैं सत्य, अहिंसा, स्याद्वाद के उपदेशक अति धीर हैं। सहन किये उपसर्ग अनेकों सर्दी वर्षा धाम हैं।18| पशु बलियों की प्रथा मिटायी शांति मूर्ति गुरूदेव ने त्याग कराया सप्तव्यसन का प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 105 $455514141414157457557654745746749745
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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