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इस युग के आदर्श संत
परमपूज्य प्रातः स्मरणीय 108 आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज छाणी इस युग के एक आदर्श संतशिरोमणि थे। उनके प्रारंभिक जीवन से ही पता चलता है कि उनको सांसारिक जीवन खींच नही सके, वे बाल ब्रह्मचारी रहे। उनके पिताजी ने विवाह जैसे बंधन में डालने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन वे इतने निश्चय के धनी थे कि उनकी वैराग्य भावनायें बढ़ती ही गईं और एक दिन उनका संत जैसा जीवन बन गया। संवत् 1990 में आपका सागवाड़ा राजस्थान में चार्तुमास था। क्षुल्लक अवस्था में थे। लेकिन उस अवस्था को भी आपने विकल्प रूप में देखा और श्री मंदिर में भगवान आदिनाथ स्वामी के चरणों में जाकर उन्हीं जैसा आदर्श दिगम्बर जीवन अपनाकर अपने आपको कृतकृत्य बना डाला । आपके समय में मुनि जीवन प्रायः लुप्त हो गया था। इसलिए हम गौरव के साथ कह सकते हैं, कि परमपूज्य आचार्य शान्तिसागर जी महाराज इस बीसवीं शताब्दी के प्रथम साधक संत थे। जिन्होंने विलुप्त मुनि परंपरा को जीवित किया-ऐसे महान आदर्श संत की स्मृति में ग्रन्थ प्रकाशन करने के लिए प्रेरणायें देकर परम पूज्य 108 श्री उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज ने विलुप्त इतिहास को । जीवित करके एवं श्रमण संस्कृति के साधक संत के जीवन का अध्ययन करने के लिए अपूर्व अवसर दिया है। आचार्य श्री का आदर्श जीवन था। जहाँ तक मुझे याद है, एक बार आचार्य श्री के दर्शनों का सौभाग्य मुझे मिला था। मैं उस समय विद्यार्थी जीवन में था। महाराज श्री के मुखमण्डल पर अपूर्व तेज व वैराग्य भावनायें प्रकट होती थीं। वे रात्रि में एकांत साध ना किया करते थे। उनके जीवन का लक्ष्य वीतरागता का प्रचार और प्रसार LE करना था, उनके शब्दों में बड़ा ओज था-उदार विचारधारा के संत थे। उन्होंने समाज को वे प्रेरणायें दी, जिनसे लुप्त मानवता जीवित हो गई। यह उन्हीं के चरणों व आर्शीवाद का प्रभाव है जिनसे आज हमें दिगम्बर जैन संतों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त है। महाराज श्री के शब्दों में वह आकर्षण था, . जिससे जैन ही नहीं, अपितु अजैन भी प्रभावित होते थे। कितने ही श्रावकों
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1- 4411STEIFIEFTEPIPा
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