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________________ 55555555555555555555555555555 + आराधना वाले आत्माओं की आवश्यकता है। ऐसे परम पवित्र प्रातःस्मरणीय आचार्यप्रवर - पू. शान्तिसागर महाराज (छाणी) धन्य हैं। मैं उनके चरणों में उनके गुणों की प्राप्ति हेतु अपनी भावभीनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ तथा भावना माता हूँ कि मैं भी भविष्य में उनके + पथ का अनुसरण करके अपना कल्याण कर सकूँ। श्रद्धा सुमन के साथ पं. जगदीश चन्द जैन शास्त्री झिंझाना मुजफ्फरनगर विश्वबन्ध चारित्रनायक ____ परम पूज्य अलौकिक गुणधारक - गुस्वर्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी) महाराज मोक्ष मार्ग के अद्वितीय नेता, प्राणी मात्र के सुख के - अभिलाषी, हितमित प्रिय वचन के अभ्यासी, सांसारिक पदार्थों की इच्छाओं से रहित थे। पहले दक्षिण भारत की ओर से श्री अनन्त कीर्ति जी महाराज LE का विहार उत्तर भारत में हुआ। इनके अतिरिक्त और भी मुनि महाराजों का उस समय दक्षिण भारत में होने का साहित्य से पता चलता है। 1927 ई. में आचार्य शान्तिसागर जी महाराज का संघ उत्तर भारत में आया। श्री शिखर TE जी भी पहुंचा और मुजफ्फरनगर आदि शहरों में होता हुआ दिल्ली पहुंचा। - दूसरा संघ आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी का था, जिसका उस + समय चार्तुमास ईडर में हुआ था। श्री छाणी जी एकान्त में ध्यान करने के कारण प्रसिद्ध थे। वह उदयपुर निवासी दशा-हुमड़ जाति के रत्न थे। आपका - बहुत ऊँचा संयम था। अंतरंग बहिरंग तप के अभ्यासी और एकान्त में ध्यान, अध्ययन में रत रहने वाले थे। आगम में जो गुरु का लक्षण बतलाया है, । वे सब उत्तम लक्षण उनमें पाये जाते थे। उन आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धांजलि सादर समर्पित सहित शतशः नमोस्तु। मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) पं. सुमेर चन्द जैन प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 561
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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